महापद्म: Difference between revisions
From जैनकोष
Anita jain (talk | contribs) mNo edit summary |
(Imported from text file) |
||
Line 21: | Line 21: | ||
== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<div class="HindiText"> <p id="1">(1) अवसर्पिणी काल का नौवाँ चक्रवर्ती । यह हस्तिनापुर के राजा पद्मरथ और रानी मयूरी का पुत्र था । इसकी आठ पुत्रियाँ थी । विद्याधर इसकी आठों पुत्रियों को हरकर ले गये थे । इससे विरक्त होकर इसने अपने पुत्र पद्म को राज्य देकर इसके पुत्र विष्णु के साथ दीक्षा धारण कर की थी तथा केवलज्ञान प्राप्त कर अंत में सिद्ध पद प्राप्त किया था । बलि आदि इसी के मंत्रियों ने अकंपनाचार्य आदि मुनियों पर उपसर्ग किया था । इसकी आयु तीस हजार वर्ष की थी । इसमें इसके पाँच सौ वर्ष कुमार अवस्था में, पाँच सौ वर्ष मंडलीक अवस्था में, तीन सौ वर्ष दिग्विजय में, अठारह हजार सात सौ चक्रवर्ती होकर राज्य अवस्था में और दस हजार वर्ष संयमी अवस्था में व्यतीत हुए थे । <span class="GRef"> पद्मपुराण 20. 178-184, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 20.12-23, 60. 286-287, 510-511, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 18.101, 110 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1">(1) अवसर्पिणी काल का नौवाँ चक्रवर्ती । यह हस्तिनापुर के राजा पद्मरथ और रानी मयूरी का पुत्र था । इसकी आठ पुत्रियाँ थी । विद्याधर इसकी आठों पुत्रियों को हरकर ले गये थे । इससे विरक्त होकर इसने अपने पुत्र पद्म को राज्य देकर इसके पुत्र विष्णु के साथ दीक्षा धारण कर की थी तथा केवलज्ञान प्राप्त कर अंत में सिद्ध पद प्राप्त किया था । बलि आदि इसी के मंत्रियों ने अकंपनाचार्य आदि मुनियों पर उपसर्ग किया था । इसकी आयु तीस हजार वर्ष की थी । इसमें इसके पाँच सौ वर्ष कुमार अवस्था में, पाँच सौ वर्ष मंडलीक अवस्था में, तीन सौ वर्ष दिग्विजय में, अठारह हजार सात सौ चक्रवर्ती होकर राज्य अवस्था में और दस हजार वर्ष संयमी अवस्था में व्यतीत हुए थे । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_20#178|पद्मपुराण - 20.178-184]], </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 20.12-23, 60. 286-287, 510-511, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 18.101, 110 </span></p> | ||
<p id="2">(2) तीर्थंकर शीतलनाथ के पूर्वजन्म का नाम । <span class="GRef"> पद्मपुराण 20. 20-24 </span></p> | <p id="2">(2) तीर्थंकर शीतलनाथ के पूर्वजन्म का नाम । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_20#20|पद्मपुराण - 20.20-24]] </span></p> | ||
<p id="3">(3) जरासंध का पुत्र । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 52.38 </span></p> | <p id="3">(3) जरासंध का पुत्र । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 52.38 </span></p> | ||
<p id="4">(4) कुंडलगिरि के सुप्रभकूट का निवासी देव । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.692 </span></p> | <p id="4">(4) कुंडलगिरि के सुप्रभकूट का निवासी देव । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.692 </span></p> |
Revision as of 22:27, 17 November 2023
सिद्धांतकोष से
महाहिमवान पर्वत का एक हृद जिसमें से रोहित व रोहितास्या ये दो नदियाँ निकलती हैं। ह्री देवी इसकी अधिष्ठात्री है।–देखें लोक - 3.9।
अपर विदेह का एक क्षेत्र।–देखें लोक - 5.2।
विकृतवान् वक्षार का एक कूट–देखें लोक - 5.4
कुंडपर्वत के सुप्रभकूट का रक्षक एक नागेंद्र देव–देखें लोक - 5.12;
कुरुवंश की वंशावली के अनुसार यह एक चक्रवर्ती थे जिनका अपर नाम पद्म था–देखें पद्म ।
भावी काल के प्रथम तीर्थंकर–देखें तीर्थंकर - 5।
महापुराण <।55। श्लोक –पूर्वी पुष्करार्ध के पूर्व विदेह में पुष्कलावती देश का राजा था (2-3)। धनपद नामक पुत्र को राज्य दे दीक्षा धारण की।(18-19)। ग्यारह अंगधारी होकर तीर्थंकर प्रकृति का बंध किया। समाधिमरणकर प्राणतस्वर्ग में देव हुआ।(19-22)। यह सुविधिनाथ भगवान् का पूर्व का भव नं 2 है।–देखें सुविधिनाथ ।
पुराणकोष से
(1) अवसर्पिणी काल का नौवाँ चक्रवर्ती । यह हस्तिनापुर के राजा पद्मरथ और रानी मयूरी का पुत्र था । इसकी आठ पुत्रियाँ थी । विद्याधर इसकी आठों पुत्रियों को हरकर ले गये थे । इससे विरक्त होकर इसने अपने पुत्र पद्म को राज्य देकर इसके पुत्र विष्णु के साथ दीक्षा धारण कर की थी तथा केवलज्ञान प्राप्त कर अंत में सिद्ध पद प्राप्त किया था । बलि आदि इसी के मंत्रियों ने अकंपनाचार्य आदि मुनियों पर उपसर्ग किया था । इसकी आयु तीस हजार वर्ष की थी । इसमें इसके पाँच सौ वर्ष कुमार अवस्था में, पाँच सौ वर्ष मंडलीक अवस्था में, तीन सौ वर्ष दिग्विजय में, अठारह हजार सात सौ चक्रवर्ती होकर राज्य अवस्था में और दस हजार वर्ष संयमी अवस्था में व्यतीत हुए थे । पद्मपुराण - 20.178-184, हरिवंशपुराण 20.12-23, 60. 286-287, 510-511, वीरवर्द्धमान चरित्र 18.101, 110
(2) तीर्थंकर शीतलनाथ के पूर्वजन्म का नाम । पद्मपुराण - 20.20-24
(3) जरासंध का पुत्र । हरिवंशपुराण 52.38
(4) कुंडलगिरि के सुप्रभकूट का निवासी देव । हरिवंशपुराण 5.692
(5) महाहिमवत् कुलाचल का ह्रद-सरोवर । रोहित और हरिकांता ये दो नदियाँ इसी ह्रद से निकली है । ह्री देवी यही रहती है । महापुराण 63.103, 197, 200, हरिवंशपुराण 5.121, 130, 133
(6) आगामी नौवाँ चक्रवर्ती । महापुराण 76.483, हरिवंशपुराण 60. 564-565
(7) आगामी प्रथम तीर्थंकर― राजा श्रेणिक का जीव । महापुराण 74.452, 76.477, हरिवंशपुराण 60.558, वीरवर्द्धमान चरित्र 19.154-157
(8) जंबूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में पुष्कलावती देश के वीतशोक नगर का राजा । इसकी रानी का नाम वनमाला तथा पुत्र का नाम शिवकुमार था । महापुराण 76.130-131
(9) आगामी सोलहवाँ कुलकर । महापुराण 76.466
(10) तीर्थंकर सुविधिनाथ के दूसरे पूर्वभव का जीव-पुष्करार्ध द्वीप के पुष्कलावती देश की पुंडरीकिणी नगरी का राजा । यह जिनराज भूतहित से धर्मोपदेश सुनकर संसार से विरक्त हो गया । पुत्र घनद को राज्य सौंपने के पश्चात् यह दीक्षित हुआ । तीर्थंकर प्रकृति का बंध कर अंत में यह समाधिपूर्वक मरा और प्राणत स्वर्ग में इंद्र हुआ । वहाँ से चयकर काकंदी नगरी के राजा सुमति और उसकी पट्टरानी जयरामा के पुष्पदंत नामक पुत्र हुआ । महापुराण 55.2-28