लोहिताक्षमय: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> सुमेरु पर्वत की छ: परिधियों में प्रथम परिधि । इसे पृथ्वीकाय रूप कहा है । इसका विस्तार सोलह हजार पांच सौ योजन है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.305-306 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> सुमेरु पर्वत की छ: परिधियों में प्रथम परिधि । इसे पृथ्वीकाय रूप कहा है । इसका विस्तार सोलह हजार पांच सौ योजन है । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#305|हरिवंशपुराण - 5.305-306]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:21, 27 November 2023
सुमेरु पर्वत की छ: परिधियों में प्रथम परिधि । इसे पृथ्वीकाय रूप कहा है । इसका विस्तार सोलह हजार पांच सौ योजन है । हरिवंशपुराण - 5.305-306