दुंदुभि: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p id="1"> (1) एक संवत्सर । इसमें प्रजा सब प्रकार से आनंदित रहती है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 19.22 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) एक संवत्सर । इसमें प्रजा सब प्रकार से आनंदित रहती है । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_19#22|हरिवंशपुराण - 19.22]] </span></p> | ||
<p id="2">(2) आहार-दान से उत्पन्न पंचाश्चर्यों में एक आश्चर्य । <span class="GRef"> महापुराण 8.173-175 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) आहार-दान से उत्पन्न पंचाश्चर्यों में एक आश्चर्य । <span class="GRef"> महापुराण 8.173-175 </span></p> | ||
<p id="3">(3) युद्ध और मांगलिक अवसरों पर बनाया जाने वाला वाद्य । इसे देववाद्य भी कहते हैं । इनकी ध्वनि मेघगर्जना के समान होती है । केवलज्ञान की उत्पत्ति होने पर ये वाद्य बजाये जाते हैं । महावीर तीर्थंकर को केवलज्ञान होने के समय देवों ने साढ़े बारह करोड़ दुंदुभि वाद्य बजाये थे । <span class="GRef"> महापुराण 6.85-86, 89, 13, 177, 17, 106, 23.61, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_2#153|पद्मपुराण -2. 153]], 4.26, 13.7, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 15.10-11 </span></p> | <p id="3" class="HindiText">(3) युद्ध और मांगलिक अवसरों पर बनाया जाने वाला वाद्य । इसे देववाद्य भी कहते हैं । इनकी ध्वनि मेघगर्जना के समान होती है । केवलज्ञान की उत्पत्ति होने पर ये वाद्य बजाये जाते हैं । महावीर तीर्थंकर को केवलज्ञान होने के समय देवों ने साढ़े बारह करोड़ दुंदुभि वाद्य बजाये थे । <span class="GRef"> महापुराण 6.85-86, 89, 13, 177, 17, 106, 23.61, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_2#153|पद्मपुराण -2. 153]], 4.26, 13.7, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 15.10-11 </span></p> | ||
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Revision as of 15:10, 27 November 2023
(1) एक संवत्सर । इसमें प्रजा सब प्रकार से आनंदित रहती है । हरिवंशपुराण - 19.22
(2) आहार-दान से उत्पन्न पंचाश्चर्यों में एक आश्चर्य । महापुराण 8.173-175
(3) युद्ध और मांगलिक अवसरों पर बनाया जाने वाला वाद्य । इसे देववाद्य भी कहते हैं । इनकी ध्वनि मेघगर्जना के समान होती है । केवलज्ञान की उत्पत्ति होने पर ये वाद्य बजाये जाते हैं । महावीर तीर्थंकर को केवलज्ञान होने के समय देवों ने साढ़े बारह करोड़ दुंदुभि वाद्य बजाये थे । महापुराण 6.85-86, 89, 13, 177, 17, 106, 23.61, पद्मपुराण -2. 153, 4.26, 13.7, वीरवर्द्धमान चरित्र 15.10-11
(4) एक नगर । पद्मपुराण - 19.2