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([[महापुराण]] सर्ग संख्या ५० श्लो.सं.) पूर्वके तीसरे भवमें मंगलावती देश का राजा महाबल था ।।२-३।। दूसरे भवमें विजय नामक विमानमें अहमिन्द्र हुए ।।१३।। और वर्तमान भवमें चौथे तीर्थंकर हुए। आप अयोध्या नगरीके राजा स्वयंवरके पुत्र थे ।।१६-१९।। एक हजार राजाओं के संग दीक्षा धारण कर ली। उसी समय मनःपर्यायज्ञानकी प्राप्ति हो गयी ।।४६-५३।। अन्तमें मोक्ष प्राप्त किया ।।६५-६६।।<br>(विशेष | ([[महापुराण]] सर्ग संख्या ५० श्लो.सं.) पूर्वके तीसरे भवमें मंगलावती देश का राजा महाबल था ।।२-३।। दूसरे भवमें विजय नामक विमानमें अहमिन्द्र हुए ।।१३।। और वर्तमान भवमें चौथे तीर्थंकर हुए। आप अयोध्या नगरीके राजा स्वयंवरके पुत्र थे ।।१६-१९।। एक हजार राजाओं के संग दीक्षा धारण कर ली। उसी समय मनःपर्यायज्ञानकी प्राप्ति हो गयी ।।४६-५३।। अन्तमें मोक्ष प्राप्त किया ।।६५-६६।।<br> | ||
(विशेष <b>देखे </b>[[तीर्थंकर]] ५)।<br> | |||
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(महापुराण सर्ग संख्या ५० श्लो.सं.) पूर्वके तीसरे भवमें मंगलावती देश का राजा महाबल था ।।२-३।। दूसरे भवमें विजय नामक विमानमें अहमिन्द्र हुए ।।१३।। और वर्तमान भवमें चौथे तीर्थंकर हुए। आप अयोध्या नगरीके राजा स्वयंवरके पुत्र थे ।।१६-१९।। एक हजार राजाओं के संग दीक्षा धारण कर ली। उसी समय मनःपर्यायज्ञानकी प्राप्ति हो गयी ।।४६-५३।। अन्तमें मोक्ष प्राप्त किया ।।६५-६६।।
(विशेष देखे तीर्थंकर ५)।