इंद्र: Difference between revisions
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१. [[पद्मपुराण]] सर्ग ७/श्लोक। रथनूपुरके राजा सहस्रारका पुत्र था। रावण के दादा मालीको मारकर स्वयं इन्द्रके सदृश राज्य किया (८८) फिर आगे रावणके द्वारा युद्धमें हराय गया (३४६-३४७) अन्तमें दीक्षा लेकर निर्वाण प्राप्त किया (१०९) २. मगध देशकी राज्यवंशावली के अनुसार यह राजा शिशुपालका पिता और कल्की राजा चतुर्मुखका दादा था। यद्यपि इसे कल्की नहीं कहा गया है, परन्तु जैसे कि वंशावलीमें बताया है, यह भी अत्याचारी व कल्की था। समय वी.नि.९५८-१००० (ई.४३२-४७४)। ( | १. [[पद्मपुराण]] सर्ग ७/श्लोक। रथनूपुरके राजा सहस्रारका पुत्र था। रावण के दादा मालीको मारकर स्वयं इन्द्रके सदृश राज्य किया (८८) फिर आगे रावणके द्वारा युद्धमें हराय गया (३४६-३४७) अन्तमें दीक्षा लेकर निर्वाण प्राप्त किया (१०९) २. मगध देशकी राज्यवंशावली के अनुसार यह राजा शिशुपालका पिता और कल्की राजा चतुर्मुखका दादा था। यद्यपि इसे कल्की नहीं कहा गया है, परन्तु जैसे कि वंशावलीमें बताया है, यह भी अत्याचारी व कल्की था। समय वी.नि.९५८-१००० (ई.४३२-४७४)। (<b>देखे </b>[[इतिहास]] ३/४) ३. लोकपाल का एक भेद - दे. लोकपाल।<br>१. इंद्र सामान्यका लक्षण<br>[[तिलोयपण्णत्ति]] अधिकार संख्या ३/६५ इंदा रायसरिच्छा।<br>= देवोमें इन्द्र राजाके सदृश होता है।<br>[[सर्वार्थसिद्धि]] अध्याय संख्या १/१४/१०८/३ इन्दतीति इन्द्र आत्मा।...अथवा इन्द्र इति नाम कर्मोच्यते।<br>[[सर्वार्थसिद्धि]] अध्याय संख्या ४/४/२३९/१ अन्यदेवासाधारणाणिमादिगुणयोगादिन्दन्तीति इन्द्राः।<br>= इन्द्र शब्दका व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ है `इन्द्रतीति इन्द्रः' जो आज्ञा और एश्वर्य वाला है वह इन्द्र है। इन्द्र शब्दका अर्थ आत्मा है। अथवा इन्द्र शब्द नामकर्मका वाची है<br>([[राजवार्तिक | राजवार्तिक]] अध्याय संख्या १/१/१४/५९/१५); ([[धवला]] पुस्तक संख्या १/१,१,३३/२३३/१)।<br>जो अन्य देवोंमें असाधारण अणिमादि गुणोंके सम्बन्धसे शोभते हैं वे इन्द्र कहलाते हैं।<br>([[राजवार्तिक | राजवार्तिक]] अध्याय संख्या ४/४/१/२१२/१६)।<br>२. अहमिंद्रका लक्षण<br>[[त्रिलोकसार]] गाथा संख्या २२५....। भवणे कप्पे सव्वे हवंति अहमिंदया तत्तो ।।२२५।।<br>= स्वर्गनिके उपरि अहमिंद्र हैं ते सर्व ही समान है। हीनाधिपकना तहाँ नाही है। <br>[[अनगार धर्मामृत]] अधिकार संख्या १/४६/६६ पर उद्धृत “अहमिन्द्रोऽस्मि नेन्द्रोऽन्यो मत्तोऽस्तीत्यात्तकत्थनाः। अहमिन्द्राख्यया ख्यातिं गतास्ते हि सुरोत्तमाः। नासूया परनिन्दा वा नात्मश्लाघा न मत्सरः। केवलं सुखसाद्भूता दीव्यन्त्येते दिवौकसः।<br>= मेरे सिवाय और इन्द्र कोन हैं? मैं ही तो इन्द्र हूँ। इस प्रकार अपनेको इन्द्र उद्धोषित करनेवाले कल्पातीत देव अहमिन्द्र नामसे प्रख्यात हैं। न तो उनमें असूया है और न मत्सरता ही है, एवं न ये परकी निन्दा करते और न अपनी प्रशंसा ही करते हैं। केवल परम विभूतिके साथ सुखका अनुभव करते हैं।<br>३. दिगिन्द्रका लक्षण<br>[[त्रिलोकसार]] गाथा संख्या २२३-२२४..दिगिंदा..।..।।२२३।।...तंतराए....।....।।२२४।।<br>= बहुरि जैसे तंत्रादि राजा कहिये सेनापति तैसे लोकपाल हैं।<br>४. प्रतीन्द्रका लक्षण<br>[[तिलोयपण्णत्ति]] अधिकार संख्या ३/६५,६९ जुवरायसमा हुवंति पडिइंदा ।।६५।। इंदसमा पडिइंदा।...।।६९।।<br>= प्रतीन्द्र युवराजके समान होते हैं ([[त्रिलोकसार]] गाथा संख्या २२४) प्रतीन्द्र इन्द्र के बराबर हैं ।।६९।।<br>[[जंबूदीव-पण्णत्तिसंगहो]] अधिकार संख्या ११/३०५,३०६...। पडिइंदा इंदस्स दु चदुसु वि दिसासु णायव्वा ।।३०५।। तुल्लबल्लरूविक्कमपयावजुता हवंति ते सव्वे ।।३०६।।<br>= इन्द्रके प्रतीन्द्र चारों ही दिशाओमें जानने चाहिए ।।३०५।। वे सब तुल्य बल, रूप, विक्रम एवं प्रतापसे युक्त होते हैं।<br>• इन्द्रकी सुधर्मा सभाका वर्णन - <b>देखे </b>[[सौधर्म]] ।<br>• भवनवासी आदि देवोमें इन्द्रोंका नाम निर्देश - <b>देखे </b>[[वह वह नाम]] ।<br>५. शत इन्द्र निर्देश<br>[[द्रव्यसंग्रह]] / मूल या टीका गाथा संख्या १/५ पर उद्धृत “भवणालयचालीसा विंतरदेवाणहोंति बत्तीसा। कप्पामरचउवीसा चन्दो सूरो णरो तिरिओ।<br>= भवन, वासी देवोंके ४० इन्द्र, व्यन्तर देवोंके ३२ इन्द्र; कल्पवासी देवोंके २४ इन्द्र, ज्योतिष देवोंके चन्द्र और सूर्य ये दो, मुनष्योंका एक इन्द्र चक्रवर्ती, तथा तिर्यंचोंका इन्द्र सिंह ऐसे मिलकर १०० इन्द्र हैं।<br>(विशेष <b>देखे </b>[[वह वह नामकी देवगति)]] ।<br>[[Category:इ]] <br>[[Category:पद्मपुराण]] <br>[[Category:तिलोयपण्णत्ति]] <br>[[Category:सर्वार्थसिद्धि]] <br>[[Category:राजवार्तिक]] <br>[[Category:धवला]] <br>[[Category:त्रिलोकसार]] <br>[[Category:अनगार धर्मामृत]] <br>[[Category:जंबूदीव-पण्णत्तिसंगहो]] <br>[[Category:द्रव्यसंग्रह]] <br> |
Revision as of 09:43, 13 February 2009
१. पद्मपुराण सर्ग ७/श्लोक। रथनूपुरके राजा सहस्रारका पुत्र था। रावण के दादा मालीको मारकर स्वयं इन्द्रके सदृश राज्य किया (८८) फिर आगे रावणके द्वारा युद्धमें हराय गया (३४६-३४७) अन्तमें दीक्षा लेकर निर्वाण प्राप्त किया (१०९) २. मगध देशकी राज्यवंशावली के अनुसार यह राजा शिशुपालका पिता और कल्की राजा चतुर्मुखका दादा था। यद्यपि इसे कल्की नहीं कहा गया है, परन्तु जैसे कि वंशावलीमें बताया है, यह भी अत्याचारी व कल्की था। समय वी.नि.९५८-१००० (ई.४३२-४७४)। (देखे इतिहास ३/४) ३. लोकपाल का एक भेद - दे. लोकपाल।
१. इंद्र सामान्यका लक्षण
तिलोयपण्णत्ति अधिकार संख्या ३/६५ इंदा रायसरिच्छा।
= देवोमें इन्द्र राजाके सदृश होता है।
सर्वार्थसिद्धि अध्याय संख्या १/१४/१०८/३ इन्दतीति इन्द्र आत्मा।...अथवा इन्द्र इति नाम कर्मोच्यते।
सर्वार्थसिद्धि अध्याय संख्या ४/४/२३९/१ अन्यदेवासाधारणाणिमादिगुणयोगादिन्दन्तीति इन्द्राः।
= इन्द्र शब्दका व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ है `इन्द्रतीति इन्द्रः' जो आज्ञा और एश्वर्य वाला है वह इन्द्र है। इन्द्र शब्दका अर्थ आत्मा है। अथवा इन्द्र शब्द नामकर्मका वाची है
( राजवार्तिक अध्याय संख्या १/१/१४/५९/१५); (धवला पुस्तक संख्या १/१,१,३३/२३३/१)।
जो अन्य देवोंमें असाधारण अणिमादि गुणोंके सम्बन्धसे शोभते हैं वे इन्द्र कहलाते हैं।
( राजवार्तिक अध्याय संख्या ४/४/१/२१२/१६)।
२. अहमिंद्रका लक्षण
त्रिलोकसार गाथा संख्या २२५....। भवणे कप्पे सव्वे हवंति अहमिंदया तत्तो ।।२२५।।
= स्वर्गनिके उपरि अहमिंद्र हैं ते सर्व ही समान है। हीनाधिपकना तहाँ नाही है।
अनगार धर्मामृत अधिकार संख्या १/४६/६६ पर उद्धृत “अहमिन्द्रोऽस्मि नेन्द्रोऽन्यो मत्तोऽस्तीत्यात्तकत्थनाः। अहमिन्द्राख्यया ख्यातिं गतास्ते हि सुरोत्तमाः। नासूया परनिन्दा वा नात्मश्लाघा न मत्सरः। केवलं सुखसाद्भूता दीव्यन्त्येते दिवौकसः।
= मेरे सिवाय और इन्द्र कोन हैं? मैं ही तो इन्द्र हूँ। इस प्रकार अपनेको इन्द्र उद्धोषित करनेवाले कल्पातीत देव अहमिन्द्र नामसे प्रख्यात हैं। न तो उनमें असूया है और न मत्सरता ही है, एवं न ये परकी निन्दा करते और न अपनी प्रशंसा ही करते हैं। केवल परम विभूतिके साथ सुखका अनुभव करते हैं।
३. दिगिन्द्रका लक्षण
त्रिलोकसार गाथा संख्या २२३-२२४..दिगिंदा..।..।।२२३।।...तंतराए....।....।।२२४।।
= बहुरि जैसे तंत्रादि राजा कहिये सेनापति तैसे लोकपाल हैं।
४. प्रतीन्द्रका लक्षण
तिलोयपण्णत्ति अधिकार संख्या ३/६५,६९ जुवरायसमा हुवंति पडिइंदा ।।६५।। इंदसमा पडिइंदा।...।।६९।।
= प्रतीन्द्र युवराजके समान होते हैं (त्रिलोकसार गाथा संख्या २२४) प्रतीन्द्र इन्द्र के बराबर हैं ।।६९।।
जंबूदीव-पण्णत्तिसंगहो अधिकार संख्या ११/३०५,३०६...। पडिइंदा इंदस्स दु चदुसु वि दिसासु णायव्वा ।।३०५।। तुल्लबल्लरूविक्कमपयावजुता हवंति ते सव्वे ।।३०६।।
= इन्द्रके प्रतीन्द्र चारों ही दिशाओमें जानने चाहिए ।।३०५।। वे सब तुल्य बल, रूप, विक्रम एवं प्रतापसे युक्त होते हैं।
• इन्द्रकी सुधर्मा सभाका वर्णन - देखे सौधर्म ।
• भवनवासी आदि देवोमें इन्द्रोंका नाम निर्देश - देखे वह वह नाम ।
५. शत इन्द्र निर्देश
द्रव्यसंग्रह / मूल या टीका गाथा संख्या १/५ पर उद्धृत “भवणालयचालीसा विंतरदेवाणहोंति बत्तीसा। कप्पामरचउवीसा चन्दो सूरो णरो तिरिओ।
= भवन, वासी देवोंके ४० इन्द्र, व्यन्तर देवोंके ३२ इन्द्र; कल्पवासी देवोंके २४ इन्द्र, ज्योतिष देवोंके चन्द्र और सूर्य ये दो, मुनष्योंका एक इन्द्र चक्रवर्ती, तथा तिर्यंचोंका इन्द्र सिंह ऐसे मिलकर १०० इन्द्र हैं।
(विशेष देखे वह वह नामकी देवगति) ।