अवक्तव्य: Difference between revisions
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<p class="SanskritText">धवला पुस्तक 1/4,1,66/274/24 दोरूवेसु वग्गिदेसु वड्ढिदंस णादो दोण्णं णणो कदित्तं। तत्तो मूलमवणिय वग्गिदे ण वड्टदि पुव्विल्लारासी होदि, तेण दोण्णं ण कदित्तं पि अत्थि। एदं मणेण अवहारिय दुवे अवत्तव्वमिदि वृत्तं। ऐसा विदियगणणजाई।</p> | |||
<p class="HindiText">= दो. रूपोंका वर्ग करनेपर चूँकि वृद्धि देखी जाती है, अतः दो को नोकृति नहीं कहा जा सकता। और चूँकि उसके वर्गमेंसे मूलको कम करके वर्णित करनेपर वह वृद्धिको प्राप्त नहीं होती, किन्तु पूर्वोक्त राशी ही रहती है, अतः `दो' कृति भी नहीं हो सकता। इस बातको मनसे निश्चित कर `दो संख्या वक्तव्य है' ऐसा सूत्रमें निर्दिष्ट किया है।</p> | |||
<p>• वस्तु की कथंचित् वक्तव्यता अवक्तव्यता-देखें [[ सप्तभंगी#6 | सप्तभंगी - 6]]।</p> | |||
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Revision as of 22:37, 22 July 2020
धवला पुस्तक 1/4,1,66/274/24 दोरूवेसु वग्गिदेसु वड्ढिदंस णादो दोण्णं णणो कदित्तं। तत्तो मूलमवणिय वग्गिदे ण वड्टदि पुव्विल्लारासी होदि, तेण दोण्णं ण कदित्तं पि अत्थि। एदं मणेण अवहारिय दुवे अवत्तव्वमिदि वृत्तं। ऐसा विदियगणणजाई।
= दो. रूपोंका वर्ग करनेपर चूँकि वृद्धि देखी जाती है, अतः दो को नोकृति नहीं कहा जा सकता। और चूँकि उसके वर्गमेंसे मूलको कम करके वर्णित करनेपर वह वृद्धिको प्राप्त नहीं होती, किन्तु पूर्वोक्त राशी ही रहती है, अतः `दो' कृति भी नहीं हो सकता। इस बातको मनसे निश्चित कर `दो संख्या वक्तव्य है' ऐसा सूत्रमें निर्दिष्ट किया है।
• वस्तु की कथंचित् वक्तव्यता अवक्तव्यता-देखें सप्तभंगी - 6।