जिनेंद्र: Difference between revisions
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<p id="2">(2) | <p id="2">(2) अर्हंत । ये स्वयं केवलज्ञान के धारक होते हैं और समाज को रत्नत्रय का उपदेश देते हैं । जहाँ केवलज्ञान प्राप्त करते हैं वह स्थान तीर्थ हो जाता है । <span class="GRef"> महापुराण 1, 2, 4, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 1.6 </span></p> | ||
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Revision as of 16:23, 19 August 2020
(1) सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । महापुराण 25. 170
(2) अर्हंत । ये स्वयं केवलज्ञान के धारक होते हैं और समाज को रत्नत्रय का उपदेश देते हैं । जहाँ केवलज्ञान प्राप्त करते हैं वह स्थान तीर्थ हो जाता है । महापुराण 1, 2, 4, हरिवंशपुराण 1.6