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<p>भारतीय इतिहास की पुस्तक 1/501-506 मगध का राजा था। शिशुनागवंश का था। समय - ई. पू. श. 6।</p> | <p>भारतीय इतिहास की पुस्तक 1/501-506 मगध का राजा था। शिशुनागवंश का था। समय - ई. पू. श. 6।</p> | ||
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<p id="1">(1) भरतेश और सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । <span class="GRef"> महापुराण 24.30, 25.106 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1">(1) भरतेश और सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । <span class="GRef"> महापुराण 24.30, 25.106 </span></p> | ||
<p id="2">(2) राजा पृथु का पुत्र, पयोरथ का पिता । <span class="GRef"> पद्मपुराण 22.154-159 </span></p> | <p id="2">(2) राजा पृथु का पुत्र, पयोरथ का पिता । <span class="GRef"> पद्मपुराण 22.154-159 </span></p> | ||
<p id="3">(3) यज्ञकार्य में व्यवहृत इतना पुराना धान्य जो कारण मिलने पर भी अंकुरित न हो सके । <span class="GRef"> पद्मपुराण 11.41-42, 48, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 17.69 </span></p> | <p id="3">(3) यज्ञकार्य में व्यवहृत इतना पुराना धान्य जो कारण मिलने पर भी अंकुरित न हो सके । <span class="GRef"> पद्मपुराण 11.41-42, 48, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 17.69 </span></p> | ||
<p id="4">(4) एक चतुष्पद प्राणी-बकरा । यज्ञ के प्रकरण में इस शब्द को लेकर बड़ा विवाद हुआ था । <span class="GRef"> महापुराण 41.68, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 11.43, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 17-99-105 </span></p> | <p id="4">(4) एक चतुष्पद प्राणी-बकरा । यज्ञ के प्रकरण में इस शब्द को लेकर बड़ा विवाद हुआ था । <span class="GRef"> महापुराण 41.68, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 11.43, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 17-99-105 </span></p> | ||
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Revision as of 16:51, 14 November 2020
सिद्धांतकोष से
भारतीय इतिहास की पुस्तक 1/501-506 मगध का राजा था। शिशुनागवंश का था। समय - ई. पू. श. 6।
पुराणकोष से
(1) भरतेश और सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । महापुराण 24.30, 25.106
(2) राजा पृथु का पुत्र, पयोरथ का पिता । पद्मपुराण 22.154-159
(3) यज्ञकार्य में व्यवहृत इतना पुराना धान्य जो कारण मिलने पर भी अंकुरित न हो सके । पद्मपुराण 11.41-42, 48, हरिवंशपुराण 17.69
(4) एक चतुष्पद प्राणी-बकरा । यज्ञ के प्रकरण में इस शब्द को लेकर बड़ा विवाद हुआ था । महापुराण 41.68, पद्मपुराण 11.43, हरिवंशपुराण 17-99-105