अष्टाह्निक व्रत: Difference between revisions
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Revision as of 16:18, 19 August 2020
(व्रतविधान संग्रह/पृ. 36 व क्रियाकोश)।
गणना - इस व्रतकी पाँच मर्यादाएँ हैं - 51, 24, 15, 9, 3 अष्टाह्निकाएँ अर्थात् 17 वर्ष, 8 वर्ष, 5 वर्ष 3 वर्ष व 1 वर्ष पर्यंत किया जाता है। प्रतिवर्ष आषाढ़, कार्तिक व फाल्गुन मासके शुक्ल पक्षमें 8-15 तक 8 दिन अष्टाह्निका पर्व के हैं। विधि - भी तीन प्रकार है - उकृष्ट, मध्यम व जघन्य। उत्कृष्ट - सप्तमीके पूर्वार्ध भागमें एकाशन; 8-15 तक 8 दिन उपवास; पडवाकी दोपहर पश्चात् पारणा। मध्यम - सप्तमीको एकाशन; 8 को उपवास; 9 को पारणा; 10 को भात व जल; 11 को एक बार अल्प आहार; 12 को पूरा भोजन; 13 को जलसहित नीरस एक अन्नका भोजन; 14 को भात व मिर्च व जल; 15 को उपवास और पडिमाको पारणा। जघन्य - सप्तमीको दौपहर पश्चातसे पडिमाको दोपहर तक पूर्ण शीलका पालन, धर्मध्यान सहित मंदिरमें निवास और मौन संहित प्रतिदिन अंतराय टालकर भोजन। जाप्यमंत्र - प्रत्येक दिन अपने-अपने दिन वाले मंत्र की त्रिकाल जाप्य करनी। । 8मी को - ”ओं ह्रीं नंदीश्वरसंज्ञाय नमः।” 9मी को - ”ओं ह्रीं अष्टमहाविभूतिसंज्ञाय नमः।” 10मी को - ”ओं ह्रीं त्रिलोकसारसंज्ञाय नमः।” 11 दशी को ”ओं ह्रीं चतुर्मूखसंज्ञाय नमः।” 12 दशीको - ”ओं ह्रीं महालक्षणसंज्ञाय नमः।” 13 दशीको - ”ओं ह्रीं स्वर्गसोपानसंज्ञाय नमः।” 14 दशीको - ”ओं ह्रीं सर्वसंपत्तिसंज्ञाय नमः।” पूर्णिमाको - ”ओं ह्री इंद्रध्वजसंज्ञाय नमः।”