कृषिव्यवसाय: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
Priyanka2724 (talk | contribs) No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
कुरलकाव्य/104/1<span class="SanskritText"> नरो गच्छतु कुत्रापि सर्वत्रान्नमपेक्षते। तत्सिद्धिश्च कृषेस्तस्मात् सुभिक्षेऽपि हिताय सा।1।</span>=<span class="HindiText">आदमी जहाँ चाहे घूमे पर अंत में अपने भोजन के लिए हल का सहारा लेना ही पड़ेगा। इसलिए हर तरह की सस्ती होने पर भी कृषि सर्वोत्तम उद्यम है। </span> | कुरलकाव्य/104/1<span class="SanskritText"> नरो गच्छतु कुत्रापि सर्वत्रान्नमपेक्षते। तत्सिद्धिश्च कृषेस्तस्मात् सुभिक्षेऽपि हिताय सा।1।</span>=<span class="HindiText">आदमी जहाँ चाहे घूमे पर अंत में अपने भोजन के लिए हल का सहारा लेना ही पड़ेगा। इसलिए हर तरह की सस्ती होने पर भी कृषि सर्वोत्तम उद्यम है। </span> | ||
चरणानुयोग | |||
<noinclude> | <noinclude> |
Revision as of 22:14, 28 August 2022
कुरलकाव्य/104/1 नरो गच्छतु कुत्रापि सर्वत्रान्नमपेक्षते। तत्सिद्धिश्च कृषेस्तस्मात् सुभिक्षेऽपि हिताय सा।1।=आदमी जहाँ चाहे घूमे पर अंत में अपने भोजन के लिए हल का सहारा लेना ही पड़ेगा। इसलिए हर तरह की सस्ती होने पर भी कृषि सर्वोत्तम उद्यम है।
चरणानुयोग