केवली 03: Difference between revisions
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Revision as of 16:21, 19 August 2020
- शंका-समाधान
- ईर्यापथ आस्रव सहित भी भगवान् कैसे हो सकते हैं
धवला 13/5,4,24/51/8 जलमज्झणिवदियतत्तलोहुंडओ त्व इरियावहकम्मजलं सगसव्वजीवपदेसेहि गेण्हमाणो केवली कधं परमप्पएण समाणत्तं पडिवज्जदि त्ति भणिदे तण्णिण्णयत्थमिदं वुच्चदे—इरियावहकम्मं गहिदं पि तण्ण गहिदं...अणंतरसंसारफलणिव्वत्तणसत्तिविरहादो... बद्धं पि तण्ण बद्धं चेव, विदियसमए चेव णिज्जरुवलंभादो पुणो...पुट्ठं पि तण्ण पुट्ठं चेव; इरियावहबंधस्स संतसहावेण ...अवट्ठणाभावादो।...उदिण्णमपि तण्ण उदिण्णं दद्धगोहूमरासिव्व पत्तणिब्बीयभावत्तादो। प्रश्न—जल के बीच पड़े हुए तप्त लोह पिंड के समान ईर्यापथ कर्म जल को अपने सर्व जीव प्रदेशों द्वारा ग्रहण करते हुए केवली जिन परमात्मा के समान कैसे हो सकते हैं ? उत्तर—ईर्यापथ कर्मगृहीत होकर भी वह गृहीत नहीं है...क्योंकि वह संसारफल को उत्पन्न करने वाली शक्ति से रहित है। ...बद्ध होकर भी वह बद्ध नहीं है, क्योंकि दूसरे समय में ही उसकी निर्जरा देखी जाती है।....स्पृष्ट होकर भी वह स्पृष्ट नहीं है, कारण कि ईर्यापथ बंध का सत्त्व रूप से उनके अवस्थान नहीं पाया जाता...उदीर्ण होकर भी उदीर्ण नहीं है, क्योंकि वह दग्ध गेहूँ के समान निर्बीज भाव को प्राप्त हो गया है।
- ईर्यापथ आस्रव सहित भी भगवान् कैसे हो सकते हैं