बकुश: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
(No difference)
|
Revision as of 16:29, 19 August 2020
- बकुश
सर्वार्थसिद्धि/9/46/460/6 नैर्ग्रंथ्यंप्रतिस्थिता अखंडितव्रताः शरीरोपकरणविभूषानुवर्तिनोऽविविक्तपरिवारा मोहशबलयुक्ता बकुशाः । शबलपर्यायवाची बकुशः । = जो निर्ग्रंथ होते हैं ? व्रतों का अखंडरूप से पालन करते हैं, शरीर और उपकरणों की शोभा बढ़ाने में लगे रहते हैं, परिवार से घिरे रहते हैं (ऋद्धि और यश की कामना रखते हैं, सात और गौरव के आधार हैं ( राजवार्तिक ) और विविध प्रकार के मोहसे युक्त हैं, वे बकुश कहलाते हैं । यहाँ पर बकुश शब्द ‘शबल’ (चित्र-विचित्र) शब्द का पर्यायवाची है । ( राजवार्तिक/9/46/2/636/21 ) ( चारित्रसार/101/2 ) ।
- बकुश साधु के भेद
सर्वार्थसिद्धि/9/47/461/12 बकुशो द्विविधः- उपकरण-बकुशः शरीरबकुशश्चेति । तत्रोपकरणबकुशो बहुविशेषयुक्तोपकरणाकांक्षी । शरीर-संस्कारसेवी शरीरबकुशः । = बकुश दो प्रकार के होते हैं, - उपकरणबकुश और शरीरबकुश । उनमें से अनेक प्रकार की विशेषताओं को लिये हुए उपकरणों को चाहनेवाला उपकरणबकुश होता है, तथा शरीर का संस्कार करने वाला शरीर-बकुश है ।
राजवार्तिक/9/47/4/638/5 बकुशो द्विविधः- उपकरणबकुशः शरीर-बकुशश्चेति । तत्र उपकरणाभिष्वक्तचित्तो विविधविचित्रपरिग्रहयुक्तः बहुविशेषयुक्तोपकरणकांक्षी तत्संस्कारप्रतीकारसेवी भिक्षुरुपकरण- बकुशो भवति। शरीरसंस्कारसेवी शरीरबकुशः । = बकुश दो प्रकार- के हैं - उपकारण-बकुश और शरीर-बकुश । उपकरणों में जिनका चित्त आसक्त है, जो विचित्र परिग्रह युक्त हैं, जो सुंदर सजे हुए उपकरणों की आकांक्षा करते हैं तथा इन संस्कारों के प्रतीकार की सेवा करने वाले भिक्षु उपकरणबकुश हैं । शरीर संस्कारसेवी शरीरबकुश हैं . ( चारित्रसार/104/1 ) ।
भगवती आराधना / विजयोदया टीका/1950/1722/8 रात्रौ यथेष्टं शेते, संस्तरं च यथाकामं बहुतरं करोति, उपकरणबकुशो । देहबकुशः दिवसे वा शेते च यः पार्श्वस्थः । = जो रात में सोते हैं, अपनी इच्छा के अनुसार बिछौना भी बड़ा बनाते हैं, उपकरणों का संग्रह करते हैं, उनको उपकरणबकुश कहते हैं । जो दिन में सोता है उसको देहबकुश कहते हैं ।
- बकुश साधु संबंधी विषय - देखें साधु - 5.5