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रुचक पर्वतस्थ एक कूट−देखें [[ लोक#5.13 | लोक - 5.13]]। | रुचक पर्वतस्थ एक कूट−देखें [[ लोक#5.13 | लोक - 5.13]]। | ||
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<p id="1"> (1) एक विद्याधर । इसने राक्षस विद्याधर के साथ युद्ध किया था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 1.64 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1"> (1) एक विद्याधर । इसने राक्षस विद्याधर के साथ युद्ध किया था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 1.64 </span></p> | ||
<p id="2">(2) यक्षगीत नगर के विद्याधर । इंद्र विद्याधर ने यहाँ के विद्याधरों को इस नगर का निवासी होने के कारण यह नाम दिया था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 7.116-118 </span></p> | <p id="2">(2) यक्षगीत नगर के विद्याधर । इंद्र विद्याधर ने यहाँ के विद्याधरों को इस नगर का निवासी होने के कारण यह नाम दिया था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 7.116-118 </span></p> | ||
<p id="3">(3) व्यंतर देवों का एक भेद । ये जिनेंद्र के जन्माभिषेक के समय सपत्नीक मनोहर गीत गाते हैं । <span class="GRef"> पद्मपुराण 3.179-180 </span></p> | <p id="3">(3) व्यंतर देवों का एक भेद । ये जिनेंद्र के जन्माभिषेक के समय सपत्नीक मनोहर गीत गाते हैं । <span class="GRef"> पद्मपुराण 3.179-180 </span></p> | ||
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<p id="5">(5) जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में पलाशकूट ग्राम के यक्षदत्त और यक्षदत्ता का ज्येष्ठ पुत्र । यह यक्षिल का बडा भाई था । निर्दय होने से इसे लोग निरनुकंप कहते थे । इसने एक अंधे सर्प के ऊपर से बैलगाड़ी निकाल कर उसे मार डाला था । इस कृत्य से दु:खी होकर छोटे भाई द्वारा समझाये जाने पर यह शांत हुआ । आयु के अंत में मरकर यह निर्नामक हुआ । इसका दूसरा नाम यक्षलिक था । <span class="GRef"> महापुराण 71. 278-285, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 33.157-162 </span></p> | <p id="5">(5) जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में पलाशकूट ग्राम के यक्षदत्त और यक्षदत्ता का ज्येष्ठ पुत्र । यह यक्षिल का बडा भाई था । निर्दय होने से इसे लोग निरनुकंप कहते थे । इसने एक अंधे सर्प के ऊपर से बैलगाड़ी निकाल कर उसे मार डाला था । इस कृत्य से दु:खी होकर छोटे भाई द्वारा समझाये जाने पर यह शांत हुआ । आयु के अंत में मरकर यह निर्नामक हुआ । इसका दूसरा नाम यक्षलिक था । <span class="GRef"> महापुराण 71. 278-285, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 33.157-162 </span></p> | ||
<p id="6">(6) कृष्ण की पटरानी सुसीमा के पूर्वभव का पिता । यह जंबूद्वीप में भरतक्षेत्र के शालिग्राम का निवासी था । इसकी पत्नी देवसेना तथा पुत्री यक्षदेवी थी । इसका दूसरा नाम यक्षिल था । <span class="GRef"> महापुराण 71. 390, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60.62-67 </span></p> | <p id="6">(6) कृष्ण की पटरानी सुसीमा के पूर्वभव का पिता । यह जंबूद्वीप में भरतक्षेत्र के शालिग्राम का निवासी था । इसकी पत्नी देवसेना तथा पुत्री यक्षदेवी थी । इसका दूसरा नाम यक्षिल था । <span class="GRef"> महापुराण 71. 390, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60.62-67 </span></p> | ||
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Revision as of 16:56, 14 November 2020
सिद्धांतकोष से
रुचक पर्वतस्थ एक कूट−देखें लोक - 5.13।
पुराणकोष से
(1) एक विद्याधर । इसने राक्षस विद्याधर के साथ युद्ध किया था । पद्मपुराण 1.64
(2) यक्षगीत नगर के विद्याधर । इंद्र विद्याधर ने यहाँ के विद्याधरों को इस नगर का निवासी होने के कारण यह नाम दिया था । पद्मपुराण 7.116-118
(3) व्यंतर देवों का एक भेद । ये जिनेंद्र के जन्माभिषेक के समय सपत्नीक मनोहर गीत गाते हैं । पद्मपुराण 3.179-180
(4) भरतक्षेत्र के क्रौंचपुर नगर का एक राजा । राजिला इसकी रानी थी । इसके यहाँ यक्ष नामक एक पालतू कुत्ता था । उसने एक दिन रत्नकंबल में लिपटा हुआ एक शिशु लाकर इसे दिया था । राजा और रानी ने इस कुत्ते से प्राप्त होने के कारण उसका यक्षदत्त नाम रखा था । पद्मपुराण 48.36-37, 48-50
(5) जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में पलाशकूट ग्राम के यक्षदत्त और यक्षदत्ता का ज्येष्ठ पुत्र । यह यक्षिल का बडा भाई था । निर्दय होने से इसे लोग निरनुकंप कहते थे । इसने एक अंधे सर्प के ऊपर से बैलगाड़ी निकाल कर उसे मार डाला था । इस कृत्य से दु:खी होकर छोटे भाई द्वारा समझाये जाने पर यह शांत हुआ । आयु के अंत में मरकर यह निर्नामक हुआ । इसका दूसरा नाम यक्षलिक था । महापुराण 71. 278-285, हरिवंशपुराण 33.157-162
(6) कृष्ण की पटरानी सुसीमा के पूर्वभव का पिता । यह जंबूद्वीप में भरतक्षेत्र के शालिग्राम का निवासी था । इसकी पत्नी देवसेना तथा पुत्री यक्षदेवी थी । इसका दूसरा नाम यक्षिल था । महापुराण 71. 390, हरिवंशपुराण 60.62-67