महामति: Difference between revisions
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(<span class="GRef"> महापुराण/ </span>सर्ग/श्लोक)–महाबल भगवान् ऋषभ देव का पूर्व भव नं.1 । (5/200)। का मंत्री था। मिथ्यादृष्टि था। (4/191-192)। इसने राजा के जन्मोत्सव के अवसर पर उसके मंत्री स्वयं बुद्ध के साथ विवाद करते हुए चार्वाक मत का आलंबन लेकर जीवतत्त्व की सिद्धि में दूषण दिया था। (5/26-28)। मरकर निगोद में गया। (10/7)। | (<span class="GRef"> महापुराण/ </span>सर्ग/श्लोक)–महाबल भगवान् ऋषभ देव का पूर्व भव नं.1 । (5/200)। का मंत्री था। मिथ्यादृष्टि था। (4/191-192)। इसने राजा के जन्मोत्सव के अवसर पर उसके मंत्री स्वयं बुद्ध के साथ विवाद करते हुए चार्वाक मत का आलंबन लेकर जीवतत्त्व की सिद्धि में दूषण दिया था। (5/26-28)। मरकर निगोद में गया। (10/7)। | ||
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== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<p id="1"> (1) सौधर्मेंद्र द्वारा वृषभदेव का एक नाम । <span class="GRef"> महापुराण 25.153 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1"> (1) सौधर्मेंद्र द्वारा वृषभदेव का एक नाम । <span class="GRef"> महापुराण 25.153 </span></p> | ||
<p id="2">(2) विजयार्ध पर्वत की अलकापुरी के राजा के जन्मोत्सव पर भतूवादी चार्वाक मत का आवलंबन लेकर मंत्री स्वयंबुद्ध द्वारा कथित जीव-तत्त्व की सिद्धि में दोष लगाये थे । अंत में यह मरकर निगोद में उत्पन्न हुआ था । <span class="GRef"> महापुराण 4.111, 5.28-35, 107 </span></p> | <p id="2">(2) विजयार्ध पर्वत की अलकापुरी के राजा के जन्मोत्सव पर भतूवादी चार्वाक मत का आवलंबन लेकर मंत्री स्वयंबुद्ध द्वारा कथित जीव-तत्त्व की सिद्धि में दोष लगाये थे । अंत में यह मरकर निगोद में उत्पन्न हुआ था । <span class="GRef"> महापुराण 4.111, 5.28-35, 107 </span></p> | ||
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Revision as of 16:56, 14 November 2020
सिद्धांतकोष से
( महापुराण/ सर्ग/श्लोक)–महाबल भगवान् ऋषभ देव का पूर्व भव नं.1 । (5/200)। का मंत्री था। मिथ्यादृष्टि था। (4/191-192)। इसने राजा के जन्मोत्सव के अवसर पर उसके मंत्री स्वयं बुद्ध के साथ विवाद करते हुए चार्वाक मत का आलंबन लेकर जीवतत्त्व की सिद्धि में दूषण दिया था। (5/26-28)। मरकर निगोद में गया। (10/7)।
पुराणकोष से
(1) सौधर्मेंद्र द्वारा वृषभदेव का एक नाम । महापुराण 25.153
(2) विजयार्ध पर्वत की अलकापुरी के राजा के जन्मोत्सव पर भतूवादी चार्वाक मत का आवलंबन लेकर मंत्री स्वयंबुद्ध द्वारा कथित जीव-तत्त्व की सिद्धि में दोष लगाये थे । अंत में यह मरकर निगोद में उत्पन्न हुआ था । महापुराण 4.111, 5.28-35, 107