महाबल: Difference between revisions
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Revision as of 17:57, 6 September 2022
सिद्धांतकोष से
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असुर जातीय एक भवनवासी देव–देखें असुर ।
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( महापुराण / सर्ग/श्लोक)–राजा अतिबल का पुत्र था।(4/133)। राज्य प्राप्त किया।(4/159)। जन्मोत्सव के अवसर पर अपने मंत्री स्वयंबुद्ध द्वारा जीव के अस्तित्व की सिद्धि सुनकर आस्तिक हुआ।(5/87)। स्वयंबुद्ध मंत्री को आदित्यगति नामक मुनिराज ने बताया था कि ये दसवें भव में भरत क्षेत्र के प्रथम तीर्थंकर होंगे।(5/200)। मंत्री के मुख से अपने स्वप्नों के फल में अपनी आयु का निकट में क्षय जानकर समाधि धारण की।(5/226,230)। 22 दिन की सल्लेखनापूर्वक शरीर छोड़ (5/248-250)। ईशान स्वर्ग में ललितांग नामक देव हुए।(5/253-254)। यह ऋषभदेव का पूर्व भव नं. 9 है–देखें ऋषभदेव ।
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महापुराण/50/ श्लोक–मंगलावती देश का राजा था।(2-3)। विमलवाहन मुनि से दीक्षा ले 11 अंग का पाठी हो तीर्थंकर प्रकृति का बंध किया।(10-12)। समाधिमरणपूर्वक विजय नामक अनुत्तर विमान में अहमिंद्र हुआ।(13)। यह अभिनंदंनाथ भगवान् का पूर्व भव वं. 2 है।
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( महापुराण /60/ श्लोक) पूर्व विदेह के नंदन नगर का राजा था।(58)। दीक्षाधार।(61)। संन्यास मरणपूर्वक सहस्रार स्वर्ग में देव हुआ।(62)। यह सुप्रभ नामक बलभद्र का पूर्व भव नं. 2 है।
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नेमिनाथपुराण के रचयिता एक जैन कवि। समय–(ई. 1242)–(वरांगचरित्र/ प्र. 23/पं. खुशालचंद)
पुराणकोष से
(1) तीर्थंकर वृषभदेव के नौवें पूर्वभव का जीव-विजयार्ध पर्वत पर स्थित अलकापुरी के राजा अतिबल और उसकी रानी मनोहरा का पुत्र । राजा अतिबल ने राजोचित गुण देखकर इसे युवराज पद दिया था । मंत्री स्वयंबुद्ध द्वारा प्रतिपादित जीव के अस्तित्व की सिद्धि सुनकर इसने आत्मा का पृथक् और स्वतंत्र अस्तित्व स्वीकार किया था । अवधिज्ञानी आदित्यगति ने इसे आगामी दसवें भव में तीर्थंकर पद की प्राप्ति होने की भविष्यवाणी की थी तथा कहा था कि जंबूदीप के भरतक्षेत्र में यह प्रथम तीर्थंकर होगा । मुनि आदित्यगति से अपनी एक मास की आयु शेष जानकर इसने अपने पुत्र अतिबल को राज्य दे दिया और सन्यास धारण कर लिया था । आयु के अंत में यह निरंतर बाईस दिन तक सल्लेखना में रत रहा और शरीर छोडकर ऐशान स्वर्ग के श्रीप्रभ विमान में ललितांग देव हुआ । पूर्वभव में यह जंबूद्वीप के विदेहक्षेत्र में गंधिल देश के सिहर नगर के राजा श्रीषेण का जयवर्मा पुत्र था । राज्य दिये जाने में पिता की उपेक्षा से इसे वैराग्य हुआ और विद्याधरों के भोग की प्राप्ति की निदान करके यह सर्पदंश से मरकर महाबल हुआ था । महापुराण 4.133, 138, 151, 159, 5.86, 200, 211, 221, 226, 228-229, 248-254, हरिवंशपुराण 60.18-19
(2) एक यादव कुमार । हरिवंशपुराण 50.125
(3) सूर्यवंशी राजा सुबल का पुत्र और अतिबल का पिता । महापुराण 5.5, हरिवंशपुराण 13.8
(4) चंद्रवंशी राजा सोमयश का पुत्र और सुबल का पिता । पद्मपुराण 5. 11-12, हरिवंशपुराण 13. 16-17
(5) वृषभदेव के छियासठवें गणधर । हरिवंशपुराण 12. 66
(6) तीर्थंकर-मुनिसुव्रत के एक गणधर । महापुराण 67. 119
(7) उत्सर्पिणी काल का छठा नारायण । महापुराण 76.488
(8) नाकार्धपुर के राजा मनोजव ओर रानी वेगिनी का पुत्र । आदित्यपुर के राजा विद्यामंदर विद्याधर की पुत्री श्रीमाला के स्वयंवर में यह सम्मिलित हुआ था । पद्मपुराण 6. 357-358, 415-416
(9) चौथे बलभद्र सुप्रभ के पूर्वजन्म का नाम । पद्मपुराण 20. 232
(10) राम का पक्षधर एक विद्याधर राजा । इसने व्याघ्ररथ पर आसीन होकर युद्ध किया था । पद्मपुराण 58.4
(11) धातकीखंड द्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में पुष्कलावती देश की पुंडरीकिणी नगरी के राजा धनंजय और रानी जयसेना का पुत्र । नारायण अतिबल इसका छोटा भाई था । अतिबल की आयु पूर्ण हो जाने पर इसने समाधिगुप्त मुनिराज के पास दीक्षा लेकर अनेक तप तपे थे । आयु के अंत में शरीर छोड़कर यह प्राणत स्वर्ग में इंद्र हुआ । महापुराण 7.80-83
(12) अच्युत स्वर्ग का एक देव । पूर्वभव में यह जंबूद्वीप के पूर्वविदेहक्षेत्र में वत्सकावती देश के पृथ्वीनगर का नृप था । जयसेना इसकी रानी और रतिषेण तथा घृतिषेण पुत्र थे । महापुराण 48. 58-59, 68
(13) जंबूद्वीप के पूर्वविदेहक्षेत्र में सीता नदी के दक्षिणी तट पर स्थित मंगलावती देश में रत्नसंचयनगर का नृप । इसने अपने पुत्र धनपाल को राज्य देकर विमलवाहन गुरु के पास संयम धारण कर लिया था । पश्चात् यह ग्यारह अंग का पाठी हुआ । सोलह कारण भावनाओं के चिंतन से तीर्थंकर प्रकृति का बंध कर आयु के अंत में इसने समाधिमरण पूर्वक देह त्यागी और विजय नामक प्रथम अनुत्तर में अहमिंद्र हुआ । महापुराण 50. 2-3, 10-13, 21-22, 69
(14) बलभद्र सुप्रभ के दूसरे पूर्वभव का जीव-जंबूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में नंदन नगर का नृप । शरीर आदि के नश्वर स्वरूप का बोध हो जाने से इसने पुत्र को राज्य देकर अर्हंत प्रजापाल से संयम धारण कर के सिंहनिष्क्रीडित तप किया । अंत में यह संन्यास मरण करके सहस्रार स्वर्ग में देव हुआ । महापुराण 60.58-62
(15) कौशांबी नगरी का राजा । इसकी श्रीमती नाम की रानी और श्रीकांता नाम की पुत्री थी । इसने श्रीकांता का विवाह इंद्रसेन से किया था । श्रीकांता के साथ इसने अनंतमति नाम की एक दासी भी भेजी थी । इस दासी के कारण इंद्रसेन और उसके भाई उपेंद्रसेन में युद्ध होने की तैयारी सुनकर यह उन्हें रोकने गया किंतु रोकने असमर्थ रहने से विष-पुष्प सूंघकर मर गया था । महापुराण 62. 351-355, पांडवपुराण 4.207-212
(16) एक केवली । ये तीर्थंकर नेमिनाथ के दूसरे पूर्वभव के जीव श्रीदत्त के पिता सिद्धार्थ के दीक्षा गुरु थे । महापुराण 69. 12-14
(17) बंग देश के कांतपुर नगर के राजा सुवर्णवर्मा और रानी विद्युल्लेखा का पुत्र । इसका लालन-पालन मामा के यहाँ चंपानगरी में हुआ था । पूर्व निश्चयानुसार मामा की पुत्री कनकलता से इसका विवाह होने ही वाला था कि विवाह के पूर्व ही दोनों का समागम हो गया । इससे लज्जित होकर दोनों कांतपुर गये किंतु इसके पिता ने इसे दूसरे देश जाने के लिए कहा । ये दोनों प्रत्यंतनगर में रहने लगे । इन दोनों ने मुनिगुप्त मुनि को आहार देकर पुण्य संचय किया । वन में घूमते हुए किसी विषैले सर्प द्वारा इसे काटे जाने से यह वन में ही मर गया था । पति को मृत देखकर इसकी स्त्री कनकलता ने भी तलवार से आत्मघात कर लिया । महापुराण 75.82-94
(18) एक असुर । पूर्वभव में यह अश्वग्रीव का रत्नायुध नामक पुत्र था । महापुराण 63. 135-136
(19) राजा दशरथ का सेनापति । इसने यज्ञ में होने वाले पुण्य-पाप की उपेक्षा कर यज्ञ में राम और लक्ष्मण दोनों कुमारों का प्रभाव दिखलाना श्रेयस्कर माना था । महापुराण 67.463-464
(20) पलाशद्वीप संबंधी पलाशपुर नगर का राजा । इसकी रानी कांचनलता तथा पुत्री पद्मलता थी । इसे इसके भागीदार ने तलवार से मार डाला था । महापुराण 75.97-98, 118-120
(21) सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । महापुराण 25. 152
(22) सगर चक्रवर्ती के दूसरे पूर्वभव का जीव । महापुराण 48.143
(23) अनागत छठा नारायण । महापुराण 76. 488
(24) जंबूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में पुष्कलावती देश की पुंडरीकिणी नगरी के राजा वज्रसेन का पुत्र । यह पूर्वभव में महाबल राजा का आनंद नामक पुरोहित था । यह मरकर सवार्थसिद्धि में अहमिंद्र हुआ था । महापुराण 11. 9, 12, 160
(25) विद्याधर विनमि का पुत्र । हरिवंशपुराण 22.105
(26) जरासंध का पुत्र । हरिवंशपुराण 52.34
(27) राजा धृतराष्ट्र और रानी गांधारी का अड़तीसवाँ पुत्र । पांडवपुराण 8.197
(28) राक्षसवंशी एक विद्याधर । यह लंका का राजा था । पद्मपुराण 5.397