साधारण: Difference between revisions
From जैनकोष
mNo edit summary |
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
||
Line 5: | Line 5: | ||
</span> = <span class="HindiText">अनेक व्यक्तियों में अनुगतरूप से होने वाला वृत्तित्व ही साधारणत्व है। (विशेष देखें [[ सामान्य ]])।</span></p> | </span> = <span class="HindiText">अनेक व्यक्तियों में अनुगतरूप से होने वाला वृत्तित्व ही साधारणत्व है। (विशेष देखें [[ सामान्य ]])।</span></p> | ||
<p class="HindiText"><strong>2. साधारणासाधारण शक्ति</strong></p> | <p class="HindiText"><strong>2. साधारणासाधारण शक्ति</strong></p> | ||
<p><span class="SanskritText"><span class="GRef"> समयसार / आत्मख्याति/ | <p><span class="SanskritText"><span class="GRef"> समयसार / आत्मख्याति/ परि./शक्ति नं.26</span> स्वपरसमानासमानसमानासमानत्रिविधभावधारणात्मिका साधारणासाधारणसाधारणासाधारणधर्मत्वशक्ति:।</span>=<span class="HindiText">स्व व पर के समान, असमान और समानासमान ऐसे तीन प्रकार के भावों की धारणास्वरूप साधारण, असाधारण और साधारणासाधारण धर्मत्व शक्ति है।</span></p> | ||
<p class="HindiText"><strong>3. साधारण व असाधारण हेत्वाभास</strong></p> | <p class="HindiText"><strong>3. साधारण व असाधारण हेत्वाभास</strong></p> | ||
<p><span class="SanskritText"><span class="GRef"> श्लोकवार्तिक/4/ | <p><span class="SanskritText"><span class="GRef"> श्लोकवार्तिक/4/ भाषाकार/1/33/न्या./273/425/13,18</span> य: सपक्षे विपक्षे च भवेत् साधारणस्तु स:।... यस्तूभयस्माद्वयावृत्त: स त्वसाधारणो मत:। | ||
</span>=<span class="HindiText">व्यभिचारी हेत्वाभास तीन प्रकार का है-साधारण, असाधारण और अनुपसंहारी। तहाँ जो हेतु सपक्ष व विपक्ष दोनों में रह जाता है वह साधारण है, और जो हेतु सपक्ष और विपक्ष दोनों में नहीं ठहरता वह असाधारण है।</span></p> | </span>=<span class="HindiText">व्यभिचारी हेत्वाभास तीन प्रकार का है-साधारण, असाधारण और अनुपसंहारी। तहाँ जो हेतु सपक्ष व विपक्ष दोनों में रह जाता है वह साधारण है, और जो हेतु सपक्ष और विपक्ष दोनों में नहीं ठहरता वह असाधारण है।</span></p> | ||
<p class="HindiText"><strong>4. अन्य संबंधित विषय</strong></p> | <p class="HindiText"><strong>4. अन्य संबंधित विषय</strong></p> | ||
<ol class="HindiText"> | <ol class="HindiText"> | ||
<li>साधारण व असाधारण गुण, निमित्त व पारिणामिक भाव-देखें [[ | <li>साधारण व असाधारण गुण, निमित्त व पारिणामिक भाव-देखें [[ पारिणामिक ]]; [[ ।</li> | ||
<li>वसतिका का एक दोष-देखें [[ वसतिका ]]।</li> | <li>वसतिका का एक दोष-देखें [[ वसतिका#8.3 | वसतिका 8.3]]।</li> | ||
<li>साधारण नामकर्म व साधारण वनस्पति-देखें [[ | <li>साधारण नामकर्म व साधारण वनस्पति-देखें [[ वनस्पति_व_प्रत्येक_वनस्पति_सामान्य_निर्देश | वनस्पति - 4]]।</li> | ||
</ol> | </ol> | ||
Line 37: | Line 37: | ||
[[Category: पुराण-कोष]] | [[Category: पुराण-कोष]] | ||
[[Category: स]] | [[Category: स]] | ||
[[Category: द्रव्यानुयोग]] | [[Category: द्रव्यानुयोग]] |
Revision as of 13:38, 5 November 2022
सिद्धांतकोष से
1. साधारणत्व का लक्षण
सप्तभंगीतरंगिणी/78/6 अनेकव्यक्तिवृत्तित्वमेव हि साधारणत्वम् । = अनेक व्यक्तियों में अनुगतरूप से होने वाला वृत्तित्व ही साधारणत्व है। (विशेष देखें सामान्य )।
2. साधारणासाधारण शक्ति
समयसार / आत्मख्याति/ परि./शक्ति नं.26 स्वपरसमानासमानसमानासमानत्रिविधभावधारणात्मिका साधारणासाधारणसाधारणासाधारणधर्मत्वशक्ति:।=स्व व पर के समान, असमान और समानासमान ऐसे तीन प्रकार के भावों की धारणास्वरूप साधारण, असाधारण और साधारणासाधारण धर्मत्व शक्ति है।
3. साधारण व असाधारण हेत्वाभास
श्लोकवार्तिक/4/ भाषाकार/1/33/न्या./273/425/13,18 य: सपक्षे विपक्षे च भवेत् साधारणस्तु स:।... यस्तूभयस्माद्वयावृत्त: स त्वसाधारणो मत:। =व्यभिचारी हेत्वाभास तीन प्रकार का है-साधारण, असाधारण और अनुपसंहारी। तहाँ जो हेतु सपक्ष व विपक्ष दोनों में रह जाता है वह साधारण है, और जो हेतु सपक्ष और विपक्ष दोनों में नहीं ठहरता वह असाधारण है।
4. अन्य संबंधित विषय
- साधारण व असाधारण गुण, निमित्त व पारिणामिक भाव-देखें पारिणामिक ; [[ ।
- वसतिका का एक दोष-देखें वसतिका 8.3।
- साधारण नामकर्म व साधारण वनस्पति-देखें वनस्पति - 4।
पुराणकोष से
वैण स्वर का एक भेद । हरिवंशपुराण 19.147