स्वगुरुस्थानसंक्रांति: Difference between revisions
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Revision as of 17:32, 25 June 2023
गर्भान्वयी त्रेपन क्रियाओं में उन्नीसवीं क्रिया । इसमें आचार्य के द्वारा अपने किसी सुयोग्य शिष्य को अपना पद सौंपे जाने पर गुरु की अनुमति से उनके स्थान पर अधिष्ठित होकर वह उनके समस्त आचरणों का स्वयं वाहन करते हुए सबका संचालन करता है । महापुराण 38.59, 172-174