पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 114 - समय-व्याख्या: Difference between revisions
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Latest revision as of 13:26, 30 June 2023
उद्दंमसयमक्खियमधुकरभमरा पतंगमादीया । (114)
रूपं रसं च गंधं फासं पुण ते वि जाणंति ॥124॥
अर्थ:
डाँस, मच्छर, मक्खी, मधुमक्खी, भँवरा, पतंगे आदि वे (चार इन्द्रिय जीव) रूप, रस, गंध, स्पर्श को जानते हैं ।
समय-व्याख्या:
चतुरिन्द्रियप्रकारसूचनेयम् ।
एते स्पर्शनरसनघ्राणचक्षुरिन्द्रियावरणक्षयोपशमात् श्रोत्रेन्द्रियावरणोदये नोइन्द्रिया-वरणोदये च सति स्पर्शरसगन्धवर्णानां परिच्छेत्तारश्चतुरिन्द्रिया अमनसो भवन्तीति ॥११४॥
समय-व्याख्या हिंदी :
यह, चतुरिंद्रिय जीवों के प्रकार की सूचना है ।
स्पर्शनेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय और चक्षुरिन्द्रिय के आवरण के क्षयोपशम के कारण तथा श्रोत्रेन्द्रिय के आवरण का उदय तथा मन के आवरण का उदय होने से स्पर्श,रस, गन्ध और वर्ण को जानने वाले यह (डाँस आदि) जीव मनरहित चतुरिंद्रिय जीव हैं ॥११४॥