संक्रमण सामान्य का लक्षण: Difference between revisions
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<p><span class="PrakritText"><span class="GRef"> कषायपाहुड़ 1/1,18/315/3 </span>अंतरकरणे कए जं णवुंसयवेयक्खणं तस्स 'संकमणं' ति सण्णा।</span> = <span class="HindiText">अंतरकरण कर लेने पर जो नपुंसकवेद का (क्षपक के जो) क्षपण होता है यहाँ उसकी (उस काल की) संक्रमण संज्ञा है।</span></p> | <p><span class="PrakritText"><span class="GRef"> कषायपाहुड़ 1/1,18/315/3 </span>अंतरकरणे कए जं णवुंसयवेयक्खणं तस्स 'संकमणं' ति सण्णा।</span> = <span class="HindiText">अंतरकरण कर लेने पर जो नपुंसकवेद का (क्षपक के जो) क्षपण होता है यहाँ उसकी (उस काल की) संक्रमण संज्ञा है।</span></p> | ||
<p><span class="SanskritText"><span class="GRef"> गोम्मटसार कर्मकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/438/591/14 </span>परप्रकृतिरूपपरिणमनं संक्रमणम् ।</span> = <span class="HindiText">जो प्रकृति पूर्व में बँधी थी उसका अन्य प्रकृति रूप परिणमन हो जाना संक्रमण है। | <p><span class="SanskritText"><span class="GRef"> गोम्मटसार कर्मकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/438/591/14 </span>परप्रकृतिरूपपरिणमनं संक्रमणम् ।</span> = <span class="HindiText">जो प्रकृति पूर्व में बँधी थी उसका अन्य प्रकृति रूप परिणमन हो जाना संक्रमण है। <span class="GRef">( गोम्मटसार कर्मकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/409/573/5 )</span>।</span></p> | ||
<p class="HindiText" id="1.2"><strong>2. संक्रमण के भेद</strong></p> | <p class="HindiText" id="1.2"><strong>2. संक्रमण के भेद</strong></p> | ||
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<p><span class="PrakritText"><span class="GRef"> गोम्मटसार जीवकांड/504/903 </span>संकमणं सट्ठाणपरट्ठाणं होदि।</span> = <span class="HindiText">संक्रमण दो प्रकार का है - स्वस्थान संक्रमण और परस्थान संक्रमण [इसके अतिरिक्त आनुपूर्वी संक्रमण | <p><span class="PrakritText"><span class="GRef"> गोम्मटसार जीवकांड/504/903 </span>संकमणं सट्ठाणपरट्ठाणं होदि।</span> = <span class="HindiText">संक्रमण दो प्रकार का है - स्वस्थान संक्रमण और परस्थान संक्रमण [इसके अतिरिक्त आनुपूर्वी संक्रमण <span class="GRef">( लब्धिसार/ </span>मू./249), फालिसंक्रमण और कांडक संक्रमण <span class="GRef">( गोम्मटसार कर्मकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/412/575 )</span> का निर्देश भी आगम में पाया जाता है।]</span></p> | ||
<p class="HindiText" id="1.2.2">2. भागाहार संक्रमण के भेद</p> | <p class="HindiText" id="1.2.2">2. भागाहार संक्रमण के भेद</p> | ||
<p><span class="PrakritText"><span class="GRef"> धवला 16/ </span>गा.1/409 उव्वेलणविज्झादो अधापवत्तो गुणो य सव्वो य। (संकमणं)...।409।</span> = <span class="HindiText">उसके (भागाहार या संक्रमण के) उद्वेलन, विघ्यात, अध:प्रवृत्त, गुणसंक्रमण, और सर्वसंक्रमण के भेद से पाँच प्रकार हैं।409। | <p><span class="PrakritText"><span class="GRef"> धवला 16/ </span>गा.1/409 उव्वेलणविज्झादो अधापवत्तो गुणो य सव्वो य। (संकमणं)...।409।</span> = <span class="HindiText">उसके (भागाहार या संक्रमण के) उद्वेलन, विघ्यात, अध:प्रवृत्त, गुणसंक्रमण, और सर्वसंक्रमण के भेद से पाँच प्रकार हैं।409। <span class="GRef">( गोम्मटसार कर्मकांड/409 )</span>।</span></p> | ||
<p class="HindiText" id="1.3"><strong>3. पाँचों संक्रमणों का क्रम</strong></p> | <p class="HindiText" id="1.3"><strong>3. पाँचों संक्रमणों का क्रम</strong></p> | ||
<p><span class="PrakritText"><span class="GRef"> गोम्मटसार कर्मकांड </span>व जी.प्र./416 बंधे अधापवत्तो विज्झादं सत्तमोत्ति हु अबंधे। एत्तो गुणो अवंधे पयडीणं अप्पसंत्थाणं।416।</span> | <p><span class="PrakritText"><span class="GRef"> गोम्मटसार कर्मकांड </span>व जी.प्र./416 बंधे अधापवत्तो विज्झादं सत्तमोत्ति हु अबंधे। एत्तो गुणो अवंधे पयडीणं अप्पसंत्थाणं।416।</span> |
Revision as of 22:36, 17 November 2023
संक्रमण सामान्य निर्देश
1. संक्रमण सामान्य का लक्षण
कषायपाहुड़ 1/1,18/315/3 अंतरकरणे कए जं णवुंसयवेयक्खणं तस्स 'संकमणं' ति सण्णा। = अंतरकरण कर लेने पर जो नपुंसकवेद का (क्षपक के जो) क्षपण होता है यहाँ उसकी (उस काल की) संक्रमण संज्ञा है।
गोम्मटसार कर्मकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/438/591/14 परप्रकृतिरूपपरिणमनं संक्रमणम् । = जो प्रकृति पूर्व में बँधी थी उसका अन्य प्रकृति रूप परिणमन हो जाना संक्रमण है। ( गोम्मटसार कर्मकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/409/573/5 )।
2. संक्रमण के भेद
1. सामान्य संक्रमण के भेद
धवला 15/282-284
चार्ट
गोम्मटसार जीवकांड/504/903 संकमणं सट्ठाणपरट्ठाणं होदि। = संक्रमण दो प्रकार का है - स्वस्थान संक्रमण और परस्थान संक्रमण [इसके अतिरिक्त आनुपूर्वी संक्रमण ( लब्धिसार/ मू./249), फालिसंक्रमण और कांडक संक्रमण ( गोम्मटसार कर्मकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/412/575 ) का निर्देश भी आगम में पाया जाता है।]
2. भागाहार संक्रमण के भेद
धवला 16/ गा.1/409 उव्वेलणविज्झादो अधापवत्तो गुणो य सव्वो य। (संकमणं)...।409। = उसके (भागाहार या संक्रमण के) उद्वेलन, विघ्यात, अध:प्रवृत्त, गुणसंक्रमण, और सर्वसंक्रमण के भेद से पाँच प्रकार हैं।409। ( गोम्मटसार कर्मकांड/409 )।
3. पाँचों संक्रमणों का क्रम
गोम्मटसार कर्मकांड व जी.प्र./416 बंधे अधापवत्तो विज्झादं सत्तमोत्ति हु अबंधे। एत्तो गुणो अवंधे पयडीणं अप्पसंत्थाणं।416। प्रकृतीनां बंधेसति स्वस्वबंधव्युच्छित्तिपर्यंतमध:प्रवृत्तसंक्रमण: स्यात् न मिथ्यात्वस्य।...बंधव्युच्छित्तौ सत्यामसंयताद्यप्रमत्तपर्यंतं विघ्यातसंक्रमणं स्यात् । इत: अप्रमत्तगुणस्थानादुपर्युपशांतकषायपर्यंतं बंधरहिताप्रशस्तप्रकृतीनां गुणसंक्रमणं स्यात् । ततोऽन्यत्रापि प्रथमोपशमसम्यक्त्वग्रहणप्रथमसमयादंतर्मुहूर्तपर्यंतं पुन: मिश्रसम्यक्त्वप्रकृत्यो: पूरणकाले मिथ्यात्वक्षपणायामपूर्वकरणपरिणामांमिथ्यात्वचरमकांडकद्विकचरमफालिपर्यंतं च गुणसंक्रमणं स्यात् । चरमफालौ सर्वसंक्रमणं स्यात् ।=प्रकृतियों के बंध होने पर अपनी-अपनी बंध व्युच्छित्ति पर्यंत अध:प्रवृत्त संक्रमण होता है परंतु मिथ्यात्व प्रकृति का नहीं होता। और बंध की व्युच्छित्ति होने पर असंयत से लेकर अप्रमत्तपर्यंत विध्यातानामा संक्रमण होता है। तथा अप्रमत्त से आगे उपशांत कषाय पर्यंत बंध रहित अप्रशस्त प्रकृतियों का गुणसंक्रमण होता है। इसी तरह प्रथमोपशम सम्यक्त्व आदि अन्य जगह भी गुणसंक्रमण होता है ऐसा जानना। तथा मिश्र और सम्यक्त्व प्रकृति के पूरण काल में और मिथ्यात्व के क्षय करने में अपूर्वकरण परिणामों के द्वारा मिथ्यात्व के अंतिम कांडक की उपांत्य फालिपर्यंत गुणसंक्रमण और अंतिम फालि में सर्व संक्रमण होता है।
4. सम्यक्त्व व मिश्र प्रकृति की उद्वेलना में चार संक्रमणों का क्रम
गोम्मटसार कर्मकांड/412-413 मिच्छेसमिस्साणं अधापवत्तो मुहुत्तअंतोत्ति। उव्वेलणं तु तत्तो दुचरिमकंडोत्ति णियमेण।412। उव्वेलणपयडीणं गुणं तु चरिमम्हि कंडये णियमा। चरिमे फालिम्मि पुणो सव्वं च य होदि संकमणं।413। = मिथ्यात्व गुणस्थान को प्राप्त होने पर सम्यक्त्व मोहनीय और मिश्रमोहनीय का अंतर्मुहूर्त पर्यंत तक अध:प्रवृत्त संक्रमण होता है। और उद्वेलन नामा संक्रमण द्विचरम कांडक पर्यंत नियम से प्रवर्तता है।412। उद्वेलन प्रकृतियों का अंत के कांडक में नियम से गुण संक्रमण होता है। और अंत की फालि में सर्व संक्रमण होता है।413।