रूपानुपात: Difference between revisions
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<span class="HindiText"> देशव्रत का पाँचवाँ अतिचार- मर्यादा के बाहर काम करने वालों को निजरूप दिखाकर सचेत करना । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 58.178 </span></span> | <span class="HindiText"> देशव्रत का पाँचवाँ अतिचार- मर्यादा के बाहर काम करने वालों को निजरूप दिखाकर सचेत करना । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_58#178|हरिवंशपुराण - 58.178]] </span></span> | ||
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Latest revision as of 15:21, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
सर्वार्थसिद्धि/7/31/369/11 स्वविग्रहदर्शनं रूपानुपातः। = (देशव्रत के अतिचारों के अंतर्गत) उन्हीं पुरुषों की (जो उद्योग में जुटे हैं) अपने शरीर को दिखलना रूपानुपात है।
राजवार्तिक/7/31/4/556/8 मम रूपं निरीक्ष्य व्यापारमचिरांनिष्पादयंति इति स्वविग्रहप्ररूपणं रूपानुपात इति निर्णीयते। = ‘मुझे देखकर काम जल्दी होगा’ इस अभिप्राय से अपने शरीर को दिखाना रूपानुपात है। ( चारित्रसार/16/2 )।
पुराणकोष से
देशव्रत का पाँचवाँ अतिचार- मर्यादा के बाहर काम करने वालों को निजरूप दिखाकर सचेत करना । हरिवंशपुराण - 58.178