भावपाहुड गाथा 37: Difference between revisions
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एक्केक्कंगुलि वाही छण्णवदी होंति जाण मणुयाणं ।<br> | |||
अवसेसे य सरीरे रोया भण कित्तिया भणिया ।।३७।।<br> | |||
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एकैकांगुलौ व्याधय: पण्णवति: भवंति जानीहि मनुष्यानां ।<br> | |||
अवशेषे च शरीरे रोगा: भण कियन्त: भणिता: ।।३७।।<br> | |||
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तब पूर्ण तन में तु बताओ होंगी कितनी व्याधियाँ ।।३७ ।।<br> | |||
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<p><b> अर्थ - </b> | <p><b> अर्थ - </b> इस मनुष्य के शरीर में एक-एक अंगुल में छयानवे-छयानवे रोग होते हैं, तब कहो अवशेष समस्त शरीर में कितने रोग कहें ।।३७।।<br> | ||
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Latest revision as of 10:21, 14 December 2008
आगे यह जीव शरीरसहित उत्पन्न होता है और मरता है, उस शरीर में रोग होते हैं, उनकी संख्या दिखाते हैं -
एक्केक्कंगुलि वाही छण्णवदी होंति जाण मणुयाणं ।
अवसेसे य सरीरे रोया भण कित्तिया भणिया ।।३७।।
एकैकांगुलौ व्याधय: पण्णवति: भवंति जानीहि मनुष्यानां ।
अवशेषे च शरीरे रोगा: भण कियन्त: भणिता: ।।३७।।
एक-एक अंगुलि में जहाँ पर छयानवें हों व्याधियाँ ।
तब पूर्ण तन में तु बताओ होंगी कितनी व्याधियाँ ।।३७ ।।
अर्थ - इस मनुष्य के शरीर में एक-एक अंगुल में छयानवे-छयानवे रोग होते हैं, तब कहो अवशेष समस्त शरीर में कितने रोग कहें ।।३७।।