भावपाहुड गाथा 38: Difference between revisions
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ते रोया वि य सयला सहिया ते परवसेण पुव्वभवे ।<br> | |||
एवं सहसि महाजस किं वा बहुएहिं लविएहिं ।।३८।।<br> | |||
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ते रोगा अपि च सकला: सोढास्त्वया परवशेण पूर्वभवे ।<br> | |||
एवं सहसे महायश: ! किं वा बहुभि: लपितै: ।।३८।।<br> | |||
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पूर्वभव में सहे परवश रोग विविध प्रकार के ।<br> | |||
अर सहोगे बहु भाँति अब इससे अधिक हम क्या कहें?।।३८ ।।<br> | |||
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<p><b> अर्थ - </b> हे | <p><b> अर्थ - </b> हे महायश ! हे मुने ! तूने पूर्वोक्त सब रोगों को पूर्वभवों में तो परवश सहे, इसप्रकार ही फिर सहेगा, बहुत कहने से क्या ? </p> | ||
<p><b> भावार्थ -</b> यह जीव पराधीन होकर सब दु:ख सहता है । यदि ज्ञान भावना करे और दु:ख आने पर उससे चलायन न हो, इसतरह स्ववश होकर सहे तो कर्म का नाशकर मुक्त हो जावे, इसप्रकार जानना चाहिए ।।३८।।<br> | |||
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Latest revision as of 10:22, 14 December 2008
आगे कहते हैं कि जीव ! उन रोगों का दु:ख तूने सहा -
ते रोया वि य सयला सहिया ते परवसेण पुव्वभवे ।
एवं सहसि महाजस किं वा बहुएहिं लविएहिं ।।३८।।
ते रोगा अपि च सकला: सोढास्त्वया परवशेण पूर्वभवे ।
एवं सहसे महायश: ! किं वा बहुभि: लपितै: ।।३८।।
पूर्वभव में सहे परवश रोग विविध प्रकार के ।
अर सहोगे बहु भाँति अब इससे अधिक हम क्या कहें?।।३८ ।।
अर्थ - हे महायश ! हे मुने ! तूने पूर्वोक्त सब रोगों को पूर्वभवों में तो परवश सहे, इसप्रकार ही फिर सहेगा, बहुत कहने से क्या ?
भावार्थ - यह जीव पराधीन होकर सब दु:ख सहता है । यदि ज्ञान भावना करे और दु:ख आने पर उससे चलायन न हो, इसतरह स्ववश होकर सहे तो कर्म का नाशकर मुक्त हो जावे, इसप्रकार जानना चाहिए ।।३८।।