अप्रशस्तध्यान: Difference between revisions
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<p> अशुभ भावों से युक्त दुर्ध्यान । यह अति और रौद्र ध्यान के भेद से दो प्रकार का होता है । यह संसारवर्धक है, इसीलिए हेय है । महापुराण 21.27-29</p> | <p> अशुभ भावों से युक्त दुर्ध्यान । यह अति और रौद्र ध्यान के भेद से दो प्रकार का होता है । यह संसारवर्धक है, इसीलिए हेय है । <span class="GRef"> महापुराण 21.27-29 </span></p> | ||
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अशुभ भावों से युक्त दुर्ध्यान । यह अति और रौद्र ध्यान के भेद से दो प्रकार का होता है । यह संसारवर्धक है, इसीलिए हेय है । महापुराण 21.27-29