धनपति: Difference between revisions
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(म.पु./65/श्लोक) कच्छदेश में क्षेमपुरी का राजा था।2। पुत्र को राज्य दे दीक्षा धारण की।6-7। ग्यारह अंगों का ज्ञान प्राप्त कर तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध किया। समाधिमरण कर जयन्त विमान में अहमिन्द्र हुए।8-9। यह अरहनाथ भगवान् का पूर्व का दूसरा भव है–देखें [[ अरनाथ ]]। | |||
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<p id="1"> (1) धातकीखण्ड के पूर्व विदेहक्षेत्र मे सीता-नदी के उत्तर तट पर स्थित सुकच्छ देश के क्षे<span class="GRef"> महापुराण </span>र-नगर के राजा नन्दिषेण के पुत्र । पिता इन्हें ही राज्य सौंपकर दीक्षित हुए थे । <span class="GRef"> महापुराण </span> 53.2 12-13 इन्होंने भी मुनि अर्हन्नन्दन से धर्मोपदेश सुनकर अपने पुत्र को राज्य दे दिया था और दीक्षा धारण कर ली थी । इन्होंने ग्यारह अंगों का ज्ञान प्राप्त किया, सोलहकारण-भावनाओं का चिन्तन किया और तीर्थंकर-प्रकृति का बन्ध किया । अन्त में प्रायोपगमन-संन्यास के द्वारा मरण कर ये जयन्त-विमान में अहमिन्द्र हुए और यहाँ से च्युत होकर ये अकार तीर्थंकर अरनाथ हुए । <span class="GRef"> महापुराण </span> 65.2-3, 6-9, 16.25</p> | |||
<p id="2">(2) चन्द्राभनगर का स्वामी और तिलोत्तमा का गति । इसके लोकपाल आदि बत्तीस पुत्र थे और पद्मोत्तमा पुत्री थी । पद्मोत्तमा को सर्प ने डस लिया था । इसने घोषणा की थी जो उसे सर्पदंश से</p> | |||
<p>मुक्त करेगा उसे यह आधा राज्य और इस पुत्री को दे देगा । जीवन्धर ने यह कार्य किया और उसे इसने आधा राज्य दे दिया तथा इस पुत्री के साथ उसका विवाह भी कर दिया । <span class="GRef"> महापुराण </span> 75. 390-400</p> | |||
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Revision as of 21:42, 5 July 2020
== सिद्धांतकोष से == (म.पु./65/श्लोक) कच्छदेश में क्षेमपुरी का राजा था।2। पुत्र को राज्य दे दीक्षा धारण की।6-7। ग्यारह अंगों का ज्ञान प्राप्त कर तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध किया। समाधिमरण कर जयन्त विमान में अहमिन्द्र हुए।8-9। यह अरहनाथ भगवान् का पूर्व का दूसरा भव है–देखें अरनाथ ।
पुराणकोष से
(1) धातकीखण्ड के पूर्व विदेहक्षेत्र मे सीता-नदी के उत्तर तट पर स्थित सुकच्छ देश के क्षे महापुराण र-नगर के राजा नन्दिषेण के पुत्र । पिता इन्हें ही राज्य सौंपकर दीक्षित हुए थे । महापुराण 53.2 12-13 इन्होंने भी मुनि अर्हन्नन्दन से धर्मोपदेश सुनकर अपने पुत्र को राज्य दे दिया था और दीक्षा धारण कर ली थी । इन्होंने ग्यारह अंगों का ज्ञान प्राप्त किया, सोलहकारण-भावनाओं का चिन्तन किया और तीर्थंकर-प्रकृति का बन्ध किया । अन्त में प्रायोपगमन-संन्यास के द्वारा मरण कर ये जयन्त-विमान में अहमिन्द्र हुए और यहाँ से च्युत होकर ये अकार तीर्थंकर अरनाथ हुए । महापुराण 65.2-3, 6-9, 16.25
(2) चन्द्राभनगर का स्वामी और तिलोत्तमा का गति । इसके लोकपाल आदि बत्तीस पुत्र थे और पद्मोत्तमा पुत्री थी । पद्मोत्तमा को सर्प ने डस लिया था । इसने घोषणा की थी जो उसे सर्पदंश से
मुक्त करेगा उसे यह आधा राज्य और इस पुत्री को दे देगा । जीवन्धर ने यह कार्य किया और उसे इसने आधा राज्य दे दिया तथा इस पुत्री के साथ उसका विवाह भी कर दिया । महापुराण 75. 390-400