निर्वाण: Difference between revisions
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</span>प्र.सा./ता.वृ./6/8/9 <span class="SanskritText">स्वाधीनातीन्द्रियरूपपरमज्ञानसुखलक्षणं निर्वाणम् । </span></p> | |||
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<li class="HindiText"> | <li class="HindiText"> स्वाधीन अतीन्द्रियरूप परमज्ञान व सुख लक्षण निर्वाण है। </li> | ||
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<li class="HindiText"><strong> भगवान् महावीर का निर्वाण | <li class="HindiText"><strong> भगवान् महावीर का निर्वाण दिवस–देखें [[ इतिहास#2 | इतिहास - 2]]।</strong></li> | ||
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<p id="1">(1) मोक्ष । समस्त कर्मों के क्षय से प्राप्य, शाश्वत सुख । <span class="GRef"> महापुराण 72. 270, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 1. 125, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 5.7 </span></p> | |||
<p id="2">(2) प्रथम अग्रायणीयपूर्व की चौदह वस्तुओं में ग्यारहवीं वस्तु । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 10. 77-80, </span>देखें [[ अग्रायणीयपूर्व ]]</p> | |||
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Revision as of 21:43, 5 July 2020
== सिद्धांतकोष से ==
नि.सा./मू./179-181 णवि दुक्खं णवि सुक्खं णवि पीडा णेव विज्जदे बाहा। णवि मरणं णवि जणणं तत्थेव य होइ णिव्वाणं।179। णवि इंदिय उवसग्गा णवि मोहो विम्हियो ण णिद्दा य। ण य तिण्हा णेव छुहा तत्थेव य होइ णिव्वाणं।180। णवि कम्मं णोकम्मं णवि चिंता णेव अट्टरुद्दाणि। णवि धम्मसुक्कझाणे तत्थेव य होइ णिव्वाणं।181। =जहां दु:ख नहीं है, सुख नहीं है, पीड़ा, बाधा, मरण, जन्म कुछ नहीं है वहीं निर्वाण है।179। जहां इन्द्रियां, मोह, विस्मय, निद्रा, तृषा, क्षुधा, कुछ नहीं है वहीं निर्वाण है।180। जहां कर्म और नोकर्म, चिन्ता, आर्त व रौद्रध्यान अथवा धर्म व शुक्लध्यान कुछ नहीं है, वहीं निर्वाण है।181। भ.आ./वि./11/53/20 निर्वाणं विनाश:, तथा प्रयोग: निर्वाण: प्रदीपो नष्ट इति यावत् । विनाशसामान्यमुपादाय वर्तमानोऽपि निर्वाणशब्द: चरणशब्दस्य निर्जातकर्मशातनसामर्थ्याभिधायिन: प्रयोगात्मकर्मविनाशगोचरो भवति। स च कर्मणां विनाशो द्विप्रकार:, कतिपय: प्रलय: सकलप्रलयश्च। तत्र द्वितीयपरिग्रहमाचष्टे। =निर्वाण शब्द का ‘विनाश’ ऐसा अर्थ है। जैसे–प्रदीप का निर्वाण हुआ अर्थात् प्रदीप नष्ट हो गया। परन्तु यहां चारित्र में जो कर्म नाश करने का सामर्थ्य है उसका प्रयोग यहां(प्रकृत में) निर्वाण शब्द से किया गया है। वह कर्म का नाश दो प्रकार से होता है–थोड़े कर्मों का नाश और सकल कर्मों का नाश। उनमें से दूसरा अर्थात् सर्व कर्मों का विनाश ही यहां अभीष्ट है।
प्र.सा./ता.वृ./6/8/9 स्वाधीनातीन्द्रियरूपपरमज्ञानसुखलक्षणं निर्वाणम् ।
- स्वाधीन अतीन्द्रियरूप परमज्ञान व सुख लक्षण निर्वाण है।
- भूतकालीन प्रथम तीर्थंकर–देखें तीर्थंकर - 5।
- भगवान् महावीर का निर्वाण दिवस–देखें इतिहास - 2।
पुराणकोष से
(1) मोक्ष । समस्त कर्मों के क्षय से प्राप्य, शाश्वत सुख । महापुराण 72. 270, हरिवंशपुराण 1. 125, वीरवर्द्धमान चरित्र 5.7
(2) प्रथम अग्रायणीयपूर्व की चौदह वस्तुओं में ग्यारहवीं वस्तु । हरिवंशपुराण 10. 77-80, देखें अग्रायणीयपूर्व