सूत्रपद: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<p> पारिव्राज्य । (दीक्षाग्रहण) क्रिया में जिन पर विचार किया जाता है ऐसे सत्ताईस सूत्रपद । वे निम्न प्रकार हैं― जाति, मूर्ति, उसमें रहने वाले लक्षण, शारीरिक सौन्दर्य, प्रभा, | <p> पारिव्राज्य । (दीक्षाग्रहण) क्रिया में जिन पर विचार किया जाता है ऐसे सत्ताईस सूत्रपद । वे निम्न प्रकार हैं― जाति, मूर्ति, उसमें रहने वाले लक्षण, शारीरिक सौन्दर्य, प्रभा, मण्डल, चक्र, अभिषेक, नाथता, सिंहासन, उपाधान, छत्र, चमर, घोषणा, अशोकवृक्ष, त्रिधि, गृहशोभा, अवगाहन, क्षेत्रज्ञ, आज्ञा, सभा, कीर्ति, वन्दनीयता, वाहन, भाषा, आहार और सुख । ये परमेष्ठी के गुण होते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 39.162-166 </span></p> | ||
<noinclude> | <noinclude> | ||
[[ | [[ सूत्रजसम्यक्त्व | पूर्व पृष्ठ ]] | ||
[[ | [[ सूत्रपाहुड़ | अगला पृष्ठ ]] | ||
</noinclude> | </noinclude> | ||
[[Category: पुराण-कोष]] | [[Category: पुराण-कोष]] | ||
[[Category: स]] | [[Category: स]] |
Revision as of 21:49, 5 July 2020
पारिव्राज्य । (दीक्षाग्रहण) क्रिया में जिन पर विचार किया जाता है ऐसे सत्ताईस सूत्रपद । वे निम्न प्रकार हैं― जाति, मूर्ति, उसमें रहने वाले लक्षण, शारीरिक सौन्दर्य, प्रभा, मण्डल, चक्र, अभिषेक, नाथता, सिंहासन, उपाधान, छत्र, चमर, घोषणा, अशोकवृक्ष, त्रिधि, गृहशोभा, अवगाहन, क्षेत्रज्ञ, आज्ञा, सभा, कीर्ति, वन्दनीयता, वाहन, भाषा, आहार और सुख । ये परमेष्ठी के गुण होते हैं । महापुराण 39.162-166