अज्ञानवाद: Difference between revisions
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<p>1. अज्ञानवाद का इतिहास</p> | <p>1. अज्ञानवाद का इतिहास</p> | ||
<p> दर्शनसार गाथा 20 सिरिवीरणाहतित्थे बहुस्सुदो पाससधगणिसीसो। मक्कडिपूरणसाहू अण्णाणं भासए लोए।20। </p> | <p class="SanskritText">दर्शनसार गाथा 20 सिरिवीरणाहतित्थे बहुस्सुदो पाससधगणिसीसो। मक्कडिपूरणसाहू अण्णाणं भासए लोए।20। </p> | ||
<p>= महावीर भगवान्के तीर्थ में पार्श्वनाथ तीर्थंकर के संघ के किसी गणी का शिष्य मस्करी पूरन नाम का साधु था। उसने लोक में अज्ञान मिथ्यात्व का उपदेश दिया </p> | <p class="HindiText">= महावीर भगवान्के तीर्थ में पार्श्वनाथ तीर्थंकर के संघ के किसी गणी का शिष्य मस्करी पूरन नाम का साधु था। उसने लोक में अज्ञान मिथ्यात्व का उपदेश दिया </p> | ||
<p>( गोम्मट्टसार जीवकाण्ड / गोम्मट्टसार जीवकाण्ड जीव तत्त्व प्रदीपिका| जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा 16)।</p> | <p>( गोम्मट्टसार जीवकाण्ड / गोम्मट्टसार जीवकाण्ड जीव तत्त्व प्रदीपिका| जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा 16)।</p> | ||
<p>2. अज्ञानवाद का स्वरूप</p> | <p>2. अज्ञानवाद का स्वरूप</p> | ||
<p> सर्वार्थसिद्धि अध्याय /पं. जगरूप सहाय /8/1/पृ.5 की टिप्पणी – "कुत्सितज्ञानमज्ञान तद्येषामस्ति ते अज्ञानिकाः। ते च वादिनश्च इति अज्ञानिकवादिनः। ते च अज्ञानमेव श्रेयः असच्चिन्त्यकृतकर्मबन्धवै फल्यात्, तथा न ज्ञानं कस्यापि क्वचिदपि वस्तुन्यस्ति प्रमाणमसंर्ण्ण वस्तुविषयत्वादित्याद्यभ्युपगन्तव्यः। </p> | <p class="SanskritText">सर्वार्थसिद्धि अध्याय /पं. जगरूप सहाय /8/1/पृ.5 की टिप्पणी – "कुत्सितज्ञानमज्ञान तद्येषामस्ति ते अज्ञानिकाः। ते च वादिनश्च इति अज्ञानिकवादिनः। ते च अज्ञानमेव श्रेयः असच्चिन्त्यकृतकर्मबन्धवै फल्यात्, तथा न ज्ञानं कस्यापि क्वचिदपि वस्तुन्यस्ति प्रमाणमसंर्ण्ण वस्तुविषयत्वादित्याद्यभ्युपगन्तव्यः। </p> | ||
<p>= कुत्सित या खोटे ज्ञानको अज्ञान कहते हैं। वह जिनमें पाया जाये सो अज्ञानिक हैं। उन अज्ञानियों का जो वाद या मत सो अज्ञानवाद है। उसे माननेवाले अज्ञानवादी हैं। उनकी मान्यता ऐसी है कि अज्ञान ही प्रेय है, क्योंकि असत् की चिन्ता करके किया गया कर्मोंका बन्ध विफल है, तथा किसी को भी, कभी भी, किसी भी वस्तु में ज्ञान नहीं होता, क्योंकि प्रमाण के द्वारा असम्पूर्ण ही वस्तु को विषय करने में आता है। इस प्रकार जानना चाहिए। </p> | <p class="HindiText">= कुत्सित या खोटे ज्ञानको अज्ञान कहते हैं। वह जिनमें पाया जाये सो अज्ञानिक हैं। उन अज्ञानियों का जो वाद या मत सो अज्ञानवाद है। उसे माननेवाले अज्ञानवादी हैं। उनकी मान्यता ऐसी है कि अज्ञान ही प्रेय है, क्योंकि असत् की चिन्ता करके किया गया कर्मोंका बन्ध विफल है, तथा किसी को भी, कभी भी, किसी भी वस्तु में ज्ञान नहीं होता, क्योंकि प्रमाण के द्वारा असम्पूर्ण ही वस्तु को विषय करने में आता है। इस प्रकार जानना चाहिए। </p> | ||
<p>(स्थानांग सूत्र/अभयदेव टी./4/4/345) (सूत्रकृतांग/शीलांक टी./1/12) (नन्दिसूत्र/हरिभद्र टीका सू. 46) (षड्दर्शनसमुच्चय/बृहद्वृत्ति/श्लो.1)।</p> | <p>(स्थानांग सूत्र/अभयदेव टी./4/4/345) (सूत्रकृतांग/शीलांक टी./1/12) (नन्दिसूत्र/हरिभद्र टीका सू. 46) (षड्दर्शनसमुच्चय/बृहद्वृत्ति/श्लो.1)।</p> | ||
<p> गोम्मट्टसार कर्मकाण्ड / मूल गाथा 886-887/1069 को जाणइ णव भावे सत्तमसत्तं दयं अवच्चमिदि। अवयणजुदसत्ततयं इदि भंगा होंति तेसट्ठी ॥886॥ = को जाणइ सत्तचऊ भावं सुद्धं खु दोण्णिपंतिभवा। चत्तारि होंति एवं अण्णाणीणं तु सत्तट्ठी ॥887॥ </p> | <p class="SanskritText">गोम्मट्टसार कर्मकाण्ड / मूल गाथा 886-887/1069 को जाणइ णव भावे सत्तमसत्तं दयं अवच्चमिदि। अवयणजुदसत्ततयं इदि भंगा होंति तेसट्ठी ॥886॥ = को जाणइ सत्तचऊ भावं सुद्धं खु दोण्णिपंतिभवा। चत्तारि होंति एवं अण्णाणीणं तु सत्तट्ठी ॥887॥ </p> | ||
<p>= जीवादिक नवपदार्थ निविषैं एक एक को सप्तभंग अपेक्षा जानना। जीव अस्ति ऐसा कौन जानै है। जीव नास्ति ऐसा कौन जानै है। जीव अस्ति नास्ति ऐसा कौन जानै है। जीव अवक्तव्य ऐसा कौन जानै है। जीव अस्ति अव्यक्तव्य ऐसा कौन जानै है। जीव नास्ति अवक्तव्य ऐसा कौन जानै है। जीव अस्ति नास्ति अवक्तव्य ऐसा कौन जानै है। ऐसे ही जीव की जायगां अजीवादिक कहैं तरेसठि भेद ही हैं ॥886॥ प्रथम शुद्ध पदार्थ ऐसा लिखिए ताकै उपरि अस्ति आदि च्यारि लिखिए। इन दोऊ पंक्तिनिकरि उपजे च्यारि भंग हो हैं। शुद्ध पदार्थ अस्ति ऐसा कौन जानै है। शुद्ध पदार्थ नास्ति ऐसा कौन जानै है। शुद्ध पदार्थ अस्ति नास्ति ऐसा कौन जानै है। शुद्ध पदार्थ अवक्तव्य ऐसा कौन जानै है। ऐसे च्यारि तो ए अर पूर्वोक्त तरेसठि मिलिकरि अज्ञानवाद सड़सठि हो हैं। भावार्थ - अज्ञानवाद वाले वस्तु का न जानना ही मानै हैं। </p> | <p class="HindiText">= जीवादिक नवपदार्थ निविषैं एक एक को सप्तभंग अपेक्षा जानना। जीव अस्ति ऐसा कौन जानै है। जीव नास्ति ऐसा कौन जानै है। जीव अस्ति नास्ति ऐसा कौन जानै है। जीव अवक्तव्य ऐसा कौन जानै है। जीव अस्ति अव्यक्तव्य ऐसा कौन जानै है। जीव नास्ति अवक्तव्य ऐसा कौन जानै है। जीव अस्ति नास्ति अवक्तव्य ऐसा कौन जानै है। ऐसे ही जीव की जायगां अजीवादिक कहैं तरेसठि भेद ही हैं ॥886॥ प्रथम शुद्ध पदार्थ ऐसा लिखिए ताकै उपरि अस्ति आदि च्यारि लिखिए। इन दोऊ पंक्तिनिकरि उपजे च्यारि भंग हो हैं। शुद्ध पदार्थ अस्ति ऐसा कौन जानै है। शुद्ध पदार्थ नास्ति ऐसा कौन जानै है। शुद्ध पदार्थ अस्ति नास्ति ऐसा कौन जानै है। शुद्ध पदार्थ अवक्तव्य ऐसा कौन जानै है। ऐसे च्यारि तो ए अर पूर्वोक्त तरेसठि मिलिकरि अज्ञानवाद सड़सठि हो हैं। भावार्थ - अज्ञानवाद वाले वस्तु का न जानना ही मानै हैं। </p> | ||
<p>( भावपाहुड़ / पं. जयचन्द /137)।</p> | <p>( भावपाहुड़ / पं. जयचन्द /137)।</p> | ||
<p> भावपाहुड़ / मूल व टीका गाथा 135 "सत्तट्ठी अण्णाणी...॥135॥ सप्तषष्टि - ज्ञानेन मोक्षं मन्वानां मस्करपूरणमतानुसारिणां भवति। </p> | <p class="SanskritText">भावपाहुड़ / मूल व टीका गाथा 135 "सत्तट्ठी अण्णाणी...॥135॥ सप्तषष्टि - ज्ञानेन मोक्षं मन्वानां मस्करपूरणमतानुसारिणां भवति। </p> | ||
<p>= सड़सठ प्रकार के अज्ञान-द्वारा मोक्ष माननेवाले मस्करपूरण मतानुसारी को अज्ञान मिथ्यात्व होता है। </p> | <p class="HindiText">= सड़सठ प्रकार के अज्ञान-द्वारा मोक्ष माननेवाले मस्करपूरण मतानुसारी को अज्ञान मिथ्यात्व होता है। </p> | ||
<p>(वि.दे.-मस्करी पूरन)</p> | <p>(वि.दे.-मस्करी पूरन)</p> | ||
<p>3. अज्ञानवाद के 67 भेद</p> | <p>3. अज्ञानवाद के 67 भेद</p> | ||
<p> धवला पुस्तक 1/1,1,2/108/2 शाकल्य-वल्कल-कुथुमि-सात्यमुग्रि-नारायण-कण्व-माध्यंदिन-मोद-पैप्पलाद-बादरायण-स्वेष्टकृदैतिकायन-वसु-जैमिन्यादीनामज्ञानिकदृष्टीनां सप्तषष्टिः। </p> | <p class="SanskritText">धवला पुस्तक 1/1,1,2/108/2 शाकल्य-वल्कल-कुथुमि-सात्यमुग्रि-नारायण-कण्व-माध्यंदिन-मोद-पैप्पलाद-बादरायण-स्वेष्टकृदैतिकायन-वसु-जैमिन्यादीनामज्ञानिकदृष्टीनां सप्तषष्टिः। </p> | ||
<p>= दृष्टिवाद अंग में - शाकल्य, वल्कल, कुथुमि, सात्यमुग्रि, नारायण, कण्व, माध्यंदिन, मोद, पैप्पलाद, बादरायण, स्वेष्टकृत्, ऐतिकायन, वसु और जैमिनि आदि अज्ञानवादियों के सड़सठ मतों का.....वर्णन और निराकरण किया गया है। </p> | <p class="HindiText">= दृष्टिवाद अंग में - शाकल्य, वल्कल, कुथुमि, सात्यमुग्रि, नारायण, कण्व, माध्यंदिन, मोद, पैप्पलाद, बादरायण, स्वेष्टकृत्, ऐतिकायन, वसु और जैमिनि आदि अज्ञानवादियों के सड़सठ मतों का.....वर्णन और निराकरण किया गया है। </p> | ||
<p>( धवला पुस्तक 1/4,1,45/203/5) (राजवार्तिक अध्याय 1/20/12/74/5) (राजवार्तिक अध्याय 8/1/11/562/7) ( गोम्मट्टसार जीवकाण्ड / गोम्मट्टसार जीवकाण्ड जीव तत्त्व प्रदीपिका| जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा 360/770/13)।</p> | <p>( धवला पुस्तक 1/4,1,45/203/5) (राजवार्तिक अध्याय 1/20/12/74/5) (राजवार्तिक अध्याय 8/1/11/562/7) ( गोम्मट्टसार जीवकाण्ड / गोम्मट्टसार जीवकाण्ड जीव तत्त्व प्रदीपिका| जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा 360/770/13)।</p> | ||
<p> गोम्मट्टसार कर्मकाण्ड / मूल गाथा संख्या/886-887/1069 नव पदार्थXसप्तभंग = 63+(शुद्धपदार्थ) X (आस्ति, नास्ति, अस्ति-नास्ति, अव्यक्त = 4 मिलिकरि अज्ञानवाद सड़सठ हो है। (मूलके लिए देखें [[ शीर्षक सं#2 | शीर्षक सं - 2]])</p> | <p> गोम्मट्टसार कर्मकाण्ड / मूल गाथा संख्या/886-887/1069 नव पदार्थXसप्तभंग = 63+(शुद्धपदार्थ) X (आस्ति, नास्ति, अस्ति-नास्ति, अव्यक्त = 4 मिलिकरि अज्ञानवाद सड़सठ हो है। (मूलके लिए देखें [[ शीर्षक सं#2 | शीर्षक सं - 2]])</p> | ||
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Revision as of 13:46, 10 July 2020
1. अज्ञानवाद का इतिहास
दर्शनसार गाथा 20 सिरिवीरणाहतित्थे बहुस्सुदो पाससधगणिसीसो। मक्कडिपूरणसाहू अण्णाणं भासए लोए।20।
= महावीर भगवान्के तीर्थ में पार्श्वनाथ तीर्थंकर के संघ के किसी गणी का शिष्य मस्करी पूरन नाम का साधु था। उसने लोक में अज्ञान मिथ्यात्व का उपदेश दिया
( गोम्मट्टसार जीवकाण्ड / गोम्मट्टसार जीवकाण्ड जीव तत्त्व प्रदीपिका| जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा 16)।
2. अज्ञानवाद का स्वरूप
सर्वार्थसिद्धि अध्याय /पं. जगरूप सहाय /8/1/पृ.5 की टिप्पणी – "कुत्सितज्ञानमज्ञान तद्येषामस्ति ते अज्ञानिकाः। ते च वादिनश्च इति अज्ञानिकवादिनः। ते च अज्ञानमेव श्रेयः असच्चिन्त्यकृतकर्मबन्धवै फल्यात्, तथा न ज्ञानं कस्यापि क्वचिदपि वस्तुन्यस्ति प्रमाणमसंर्ण्ण वस्तुविषयत्वादित्याद्यभ्युपगन्तव्यः।
= कुत्सित या खोटे ज्ञानको अज्ञान कहते हैं। वह जिनमें पाया जाये सो अज्ञानिक हैं। उन अज्ञानियों का जो वाद या मत सो अज्ञानवाद है। उसे माननेवाले अज्ञानवादी हैं। उनकी मान्यता ऐसी है कि अज्ञान ही प्रेय है, क्योंकि असत् की चिन्ता करके किया गया कर्मोंका बन्ध विफल है, तथा किसी को भी, कभी भी, किसी भी वस्तु में ज्ञान नहीं होता, क्योंकि प्रमाण के द्वारा असम्पूर्ण ही वस्तु को विषय करने में आता है। इस प्रकार जानना चाहिए।
(स्थानांग सूत्र/अभयदेव टी./4/4/345) (सूत्रकृतांग/शीलांक टी./1/12) (नन्दिसूत्र/हरिभद्र टीका सू. 46) (षड्दर्शनसमुच्चय/बृहद्वृत्ति/श्लो.1)।
गोम्मट्टसार कर्मकाण्ड / मूल गाथा 886-887/1069 को जाणइ णव भावे सत्तमसत्तं दयं अवच्चमिदि। अवयणजुदसत्ततयं इदि भंगा होंति तेसट्ठी ॥886॥ = को जाणइ सत्तचऊ भावं सुद्धं खु दोण्णिपंतिभवा। चत्तारि होंति एवं अण्णाणीणं तु सत्तट्ठी ॥887॥
= जीवादिक नवपदार्थ निविषैं एक एक को सप्तभंग अपेक्षा जानना। जीव अस्ति ऐसा कौन जानै है। जीव नास्ति ऐसा कौन जानै है। जीव अस्ति नास्ति ऐसा कौन जानै है। जीव अवक्तव्य ऐसा कौन जानै है। जीव अस्ति अव्यक्तव्य ऐसा कौन जानै है। जीव नास्ति अवक्तव्य ऐसा कौन जानै है। जीव अस्ति नास्ति अवक्तव्य ऐसा कौन जानै है। ऐसे ही जीव की जायगां अजीवादिक कहैं तरेसठि भेद ही हैं ॥886॥ प्रथम शुद्ध पदार्थ ऐसा लिखिए ताकै उपरि अस्ति आदि च्यारि लिखिए। इन दोऊ पंक्तिनिकरि उपजे च्यारि भंग हो हैं। शुद्ध पदार्थ अस्ति ऐसा कौन जानै है। शुद्ध पदार्थ नास्ति ऐसा कौन जानै है। शुद्ध पदार्थ अस्ति नास्ति ऐसा कौन जानै है। शुद्ध पदार्थ अवक्तव्य ऐसा कौन जानै है। ऐसे च्यारि तो ए अर पूर्वोक्त तरेसठि मिलिकरि अज्ञानवाद सड़सठि हो हैं। भावार्थ - अज्ञानवाद वाले वस्तु का न जानना ही मानै हैं।
( भावपाहुड़ / पं. जयचन्द /137)।
भावपाहुड़ / मूल व टीका गाथा 135 "सत्तट्ठी अण्णाणी...॥135॥ सप्तषष्टि - ज्ञानेन मोक्षं मन्वानां मस्करपूरणमतानुसारिणां भवति।
= सड़सठ प्रकार के अज्ञान-द्वारा मोक्ष माननेवाले मस्करपूरण मतानुसारी को अज्ञान मिथ्यात्व होता है।
(वि.दे.-मस्करी पूरन)
3. अज्ञानवाद के 67 भेद
धवला पुस्तक 1/1,1,2/108/2 शाकल्य-वल्कल-कुथुमि-सात्यमुग्रि-नारायण-कण्व-माध्यंदिन-मोद-पैप्पलाद-बादरायण-स्वेष्टकृदैतिकायन-वसु-जैमिन्यादीनामज्ञानिकदृष्टीनां सप्तषष्टिः।
= दृष्टिवाद अंग में - शाकल्य, वल्कल, कुथुमि, सात्यमुग्रि, नारायण, कण्व, माध्यंदिन, मोद, पैप्पलाद, बादरायण, स्वेष्टकृत्, ऐतिकायन, वसु और जैमिनि आदि अज्ञानवादियों के सड़सठ मतों का.....वर्णन और निराकरण किया गया है।
( धवला पुस्तक 1/4,1,45/203/5) (राजवार्तिक अध्याय 1/20/12/74/5) (राजवार्तिक अध्याय 8/1/11/562/7) ( गोम्मट्टसार जीवकाण्ड / गोम्मट्टसार जीवकाण्ड जीव तत्त्व प्रदीपिका| जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा 360/770/13)।
गोम्मट्टसार कर्मकाण्ड / मूल गाथा संख्या/886-887/1069 नव पदार्थXसप्तभंग = 63+(शुद्धपदार्थ) X (आस्ति, नास्ति, अस्ति-नास्ति, अव्यक्त = 4 मिलिकरि अज्ञानवाद सड़सठ हो है। (मूलके लिए देखें शीर्षक सं - 2)