पद्मावती: Difference between revisions
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Revision as of 19:11, 17 July 2020
== सिद्धांतकोष से ==
- पूर्व विदेहस्थ रम्यका क्षेत्र की मुख्य नगरी - देखें लोक - 5.2;
- महापुराण/73/ श्लोक अपने पूर्वभव सर्पिणी की पर्याय में कमठ के आँठवें उत्तर भव महीपाल द्वारा लक्कड़ के जलाने पर मारी गयी (101-103)। परन्तु पार्श्वनाथ भगवान् के उपदेश से शान्तभावपूर्वक मरण करने से पद्मावती बनी (118-119)। इसी ने भगवान् पार्श्वनाथ का उपसर्ग निवारण किया था (139-141)। अतः यह पार्श्वनाथ भगवान् की शासक यक्षिणी है - देखें यक्ष ।
पुराणकोष से
(1) पूर्व विदेहस्थ रम्यका देश की राजधानी । महापुराण 63. 208-214, हरिवंशपुराण 5.260
(2) एक आर्या । गन्दर्वपुर के राजा वासव की रानी प्रभावती ने इससे दीक्षा ली थी । भद्रिलपुर के राजा मेघनाद की रानी विमलश्री ने भी इसी आर्या से दीक्षा ली थी । महापुराण 7.31 हरिवंशपुराण 60.119
(3) इन्द्रपुर नगर के स्वामी उपेन्द्रसेन की पुत्री । यह पुण्डरीक नारायण से विवाही गयी थी । महापुराण 65.119
(4) हरिवंशी राजा नरवृष्टि की रागी । उग्रसेन, देवसेन और महासेन इसके पुत्र तथा गान्धारी इसकी पुत्री थी । महापुराण 70.100-101
(5) हस्तिनापुर के राजा मेघरथ की रानी । यह विष्णु और पद्म राजकुमारों की जननी थी । महापुराण 70. 274
(6) अरिष्टपुर के राजा हिरण्यवर्मा की रानी । रोहिणी इसी की पुत्री थी । महापुराण 70. 307, पांडवपुराण 11. 31
(7) मथुरा नगरी के राजा उग्रसेन की रानी । यह कंस की जननी थी । महापुराण 70. 331-332, 341-344
(8) चम्पा नगर के सेठ सागरदत्त की पत्नी, पद्मश्री की जननी । महापुराण 76.45-50
(9) कृष्ण की आठवीं पटरानी । यह अरिष्टपुर नगर के राजा हिरण्यवर्मा और उसकी रानी श्रीमती की पुत्री थी । पूर्वभवों में यह उज्जयिनी में विजयदेव की विनयश्री नामा पुत्री, चन्द्रमा की रोहिणी नामा देवी, शाल्मलि ग्राम के विजयदेव की पुत्री, स्वर्ग में स्वयंप्रभा नामा देवी, जयन्तपुर नगर में श्रीधर राजा की पुत्री और तत्पश्चात् स्वर्ग में देवी हुई थी । महापुराण 71.126-127, 443-458-, हरिवंशपुराण 44.38, 42-43
(10) वीतशोकपुर के राजा चक्रध्वज और उसकी रानी विद्युन्मती की पुत्री । महापुराण 62.366
(11) राजपुर के वृषभदत्त सेठ की भार्या । इसने सुव्रता आर्यिका के पास संयम धारण कर लिया था । महापुराण 75.314-319
(12) तीर्थंकर पार्श्वनाथ की शासनदेवी । पूर्वभव की सर्पिणी पर्याय में अपने पति सर्प के साथ यह जिस काष्ठ-खण्ड में बैठी थी उस काष्ठखण्ड को कमठ की आठवीं उत्तर पर्याय के जीव राजा महीपाल ने अपनी तापस अवस्था में तपस्या के लिए कुल्हाड़ी से फाड़ना आरम्भ किया । उस समय महीपाल के दौहित्र कुमार पार्श्वनाथ भी वही खड़े थे । उन्होंने महीपाल को लकड़ी फाड़ने को रोका । वह नहीं माना और उसने कुल्हाड़ी से उस काष्ठखण्ड को फाड़कर देखा । उसने उसमें क्षत-विक्षत सर्प-युगल को पाया । पार्श्वनाथ ने मरते हुए इस युगल को नमस्कार मंत्र सुनाकर धर्मोपदेश दिया जिससे अगली पर्याय में यह युगल भवनवासी देव और देवी हुए । सर्पिणी पद्मावती हुई और सर्प धरणेन्द्र । जब पार्श्वनाथ तपश्चर्या में लीन थे उस समय कमठ-महीपाल के जीव शम्बर देव के द्वारा उन पर किये गये घोर उपसर्ग का निवारण इन दोनों ने ही किया था । तब से यह देवी मातृदेवी के रूप में पूजी जाने लगी । महापुराण 73. 101-119, 139-141 देखें कमठ
(13) कुशाग्र नगर के राजा सुमित्र की रानी । यह तीर्थंकर मुनिसुव्रत की जननी थी । हरिवंशपुराण 15.61-62, 16.2, 20. 56
(14) अरिष्टपुर नगर के राजा प्रियवत की द्वितीय महादेवी । यह रत्नरथ और विचित्ररथ की जननी थी । पद्मपुराण 39.148-150
(15) सुग्रीव की बारहवीं पुत्री । पद्मपुराण 47.136-144
(16) रुचकगिरि के पश्चिम दिशावर्ती पद्मकूट में रहने वाली एक देवी । हरिवंशपुराण 5.713
(17) वसुदेव की रानी । हरिवंशपुराण 1. 83, 24-30
(18) आठ दिक्कुमारियों में एक दिक्कुमारी । हरिवंशपुराण 8.110
(19) राजगृही के सागरदत्त सेठ की स्त्री । महापुराण 76.46
(20) राजा भोजकवृष्णि की रानी । इसके तीन पुत्र थे― उग्रसेन, महासेन और देवसेन । हरिवंशपुराण 18.16