शरीरों का स्वामित्व: Difference between revisions
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<strong class="HeadingTitle HindiText" id="II.1" name="II.1">1. एक जीव के एक काल में शरीरों का स्वामित्व</strong></p> | <strong class="HeadingTitle HindiText" id="II.1" name="II.1">1. एक जीव के एक काल में शरीरों का स्वामित्व</strong></p> | ||
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<span class="SanskritText"> | <span class="SanskritText"> तत्त्वार्थसूत्र/2/43 तदादीनि भाज्यानि युगपदेकस्मिन्नाचतुर्भ्य:।43।</span></p> | ||
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सर्वार्थसिद्धि/2/43/195/3 <span class="SanskritText">युगपदेकस्यात्मन:। कस्यचिद् द्वे तैजसकार्मणे। अपरस्य त्रीणि औदारिकतैजसकार्मणानि। वैक्रियिकतैजसकार्मणानि वा। अन्यस्य चत्वारि औदारिकाहारतैजसकार्मणानि विभाग: क्रियते।</span> | |||
<span class="HindiText">=एक साथ एक जीव के तैजस और कार्मण से लेकर चार शरीर तक विकल्प से होते हैं।43। किसी के तैजस और कार्मण ये दो शरीर होते हैं। अन्य के औदारिक तैजस और कार्मण, या वैक्रियिक तैजस और कार्मण ये तीन शरीर होते हैं। किसी दूसरे के औदारिक तैजस और कार्मण तथा आहारक ये चार शरीर होते हैं। इस प्रकार यह विभाग यहाँ किया गया। ( | <span class="HindiText">=एक साथ एक जीव के तैजस और कार्मण से लेकर चार शरीर तक विकल्प से होते हैं।43। किसी के तैजस और कार्मण ये दो शरीर होते हैं। अन्य के औदारिक तैजस और कार्मण, या वैक्रियिक तैजस और कार्मण ये तीन शरीर होते हैं। किसी दूसरे के औदारिक तैजस और कार्मण तथा आहारक ये चार शरीर होते हैं। इस प्रकार यह विभाग यहाँ किया गया। ( राजवार्तिक/2/43/3/150/19 )</span></p> | ||
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<span class="HindiText">देखें [[ ऋद्धि#10 | ऋद्धि - 10 ]]आहारक वैक्रियिक ऋद्धि के एक साथ होने का विरोध है।</span></p> | <span class="HindiText">देखें [[ ऋद्धि#10 | ऋद्धि - 10 ]]आहारक वैक्रियिक ऋद्धि के एक साथ होने का विरोध है।</span></p> | ||
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<strong class="HeadingTitle HindiText" id="II.2" name="II.2">2. शरीरों के स्वामित्व की आदेश प्ररूपणा</strong></p> | <strong class="HeadingTitle HindiText" id="II.2" name="II.2">2. शरीरों के स्वामित्व की आदेश प्ररूपणा</strong></p> | ||
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<span class="HindiText">संकेत―अप.=अपर्याप्त; आहा.=आहारक; औद.=औदारिक; छेदो.=छेदोपस्थापना; प.=पर्याप्त; बा.=बादर; वक्रि.=वैक्रियिक; सा.=सामान्य; सू.=सूक्ष्म। ( | <span class="HindiText">संकेत―अप.=अपर्याप्त; आहा.=आहारक; औद.=औदारिक; छेदो.=छेदोपस्थापना; प.=पर्याप्त; बा.=बादर; वक्रि.=वैक्रियिक; सा.=सामान्य; सू.=सूक्ष्म। ( षट्खण्डागम 14/5,6/ सू.132-166/238-248)</span></p> | ||
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Revision as of 19:15, 17 July 2020
2. शरीरों का स्वामित्व
1. एक जीव के एक काल में शरीरों का स्वामित्व
तत्त्वार्थसूत्र/2/43 तदादीनि भाज्यानि युगपदेकस्मिन्नाचतुर्भ्य:।43।
सर्वार्थसिद्धि/2/43/195/3 युगपदेकस्यात्मन:। कस्यचिद् द्वे तैजसकार्मणे। अपरस्य त्रीणि औदारिकतैजसकार्मणानि। वैक्रियिकतैजसकार्मणानि वा। अन्यस्य चत्वारि औदारिकाहारतैजसकार्मणानि विभाग: क्रियते। =एक साथ एक जीव के तैजस और कार्मण से लेकर चार शरीर तक विकल्प से होते हैं।43। किसी के तैजस और कार्मण ये दो शरीर होते हैं। अन्य के औदारिक तैजस और कार्मण, या वैक्रियिक तैजस और कार्मण ये तीन शरीर होते हैं। किसी दूसरे के औदारिक तैजस और कार्मण तथा आहारक ये चार शरीर होते हैं। इस प्रकार यह विभाग यहाँ किया गया। ( राजवार्तिक/2/43/3/150/19 )
देखें ऋद्धि - 10 आहारक वैक्रियिक ऋद्धि के एक साथ होने का विरोध है।
2. शरीरों के स्वामित्व की आदेश प्ररूपणा
संकेत―अप.=अपर्याप्त; आहा.=आहारक; औद.=औदारिक; छेदो.=छेदोपस्थापना; प.=पर्याप्त; बा.=बादर; वक्रि.=वैक्रियिक; सा.=सामान्य; सू.=सूक्ष्म। ( षट्खण्डागम 14/5,6/ सू.132-166/238-248)
प्रमाण |
मार्गणा |
संयोगी विकल्प |
औदारिक |
वैक्रियिक |
आहारक |
तैजस |
कार्मण |
1 |
गति मार्गणा― |
||||||
132-133 |
नरक सामान्य विशेष |
2,3 |
× |
वैक्रियिक |
× |
तैजस |
कार्मण |
134 |
तिर्यंच सामान्य पंचेन्द्रिय पर्याप्त, तिर्यंचनी पर्याप्त |
2,3,4 |
औदारिक |
वैक्रियिक |
× |
तैजस |
कार्मण |
135 |
तिर्यंच पंचेन्द्रिय अपर्याप्त |
2,3 |
औदारिक |
× |
× |
तैजस |
कार्मण |
136 |
मनुष्य सामान्य पर्याप्त, मनुष्यणी अपर्याप्त |
2,3,4 |
औदारिक |
वैक्रियिक |
आहारक |
तैजस |
कार्मण |
137 |
मनुष्य अपर्याप्त |
2,3 |
औदारिक |
× |
× |
तैजस |
कार्मण |
138-139 |
देव सामान्य विशेष |
2,3 |
× |
वैक्रियिक |
× |
तैजस |
कार्मण |
2 |
इन्द्रिय मार्गणा― |
||||||
140 |
ऐकेन्द्रिय सामान्य व बादर पर्याप्त |
2,3,4 |
औदारिक |
वैक्रियिक |
× |
तैजस |
कार्मण |
140 |
पंचेन्द्रिय सामान्य पर्याप्त |
2,3,4 |
औदारिक |
वैक्रियिक |
× |
तैजस |
कार्मण |
141 |
एकेन्द्रिय बादर अपर्याप्त , एकेन्द्रिय सूक्ष्म पर्याप्त अपर्याप्त |
2,3 |
औदारिक |
× |
× |
तैजस |
कार्मण |
141 |
विकलेन्द्रिय पर्याप्त अपर्याप्त, पंचेन्द्रिय अपर्याप्त |
2,3 |
औदारिक |
× |
× |
तैजस |
कार्मण |
3 |
काय मार्गणा― |
||||||
143 |
तेज वायु सामान्य, तेज वायु बादर पर्याप्त |
2,3,4 |
औदारिक |
वैक्रियिक |
× |
तैजस |
कार्मण |
143 |
त्रस सामान्य पर्याप्त |
2,3,4 |
औदारिक |
वैक्रियिक |
आहारक |
तैजस |
कार्मण |
142 |
शेष सर्व पर्याप्त अपर्याप्त |
2,3 |
औदारिक |
× |
× |
तैजस |
कार्मण |
4 |
योग मार्गणा― |
||||||
144 |
पाँचों मन वचन योग |
3,4 |
औदारिक |
वैक्रियिक |
आहारक |
तैजस |
कार्मण |
145 |
काय सामान्य |
2,3,4 |
औदारिक |
वैक्रियिक |
आहारक |
तैजस |
कार्मण |
144 |
औदारिक |
3,4 |
औदारिक |
वैक्रियिक |
आहारक |
तैजस |
कार्मण |
146 |
औदारिक मिश्र |
3 |
औदारिक |
× |
× |
तैजस |
कार्मण |
146 |
वैक्रियिक, वैक्रियिक मिश्र |
3 |
× |
वैक्रियिक |
× |
तैजस |
कार्मण |
147 |
आहारक, आहारक मिश्र |
4 |
औदारिक |
× |
आहारक |
तैजस |
कार्मण |
148 |
कार्मण |
2,3 |
औदारिक |
× |
× |
तैजस |
कार्मण |
5 |
वेद मार्गणा― |
||||||
149 |
पुरुष वेद |
2,3,4 |
औदारिक |
वैक्रियिक |
आहारक |
तैजस |
कार्मण |
149 |
स्त्री, नपुंसक वेद |
2,3,4 |
औदारिक |
वैक्रियिक |
× |
तैजस |
कार्मण |
151 |
अपगत वेदी |
3 |
औदारिक |
× |
× |
तैजस |
कार्मण |
6 |
कषाय मार्गणा― |
||||||
150 |
चारों कषाय |
2,3,4 |
औदारिक |
वैक्रियिक |
आहारक |
तैजस |
कार्मण |
151 |
अकषाय |
3 |
औदारिक |
× |
× |
तैजस |
कार्मण |
7 |
ज्ञान मार्गणा― |
||||||
152 |
मतिश्रुत अज्ञान |
2,3,4 |
औदारिक |
वैक्रियिक |
× |
तैजस |
कार्मण |
153 |
विभंग ज्ञान |
3,4 |
× |
वैक्रियिक |
× |
तैजस |
कार्मण |
154 |
मति, श्रुत, अवधिज्ञान |
2,3,4 |
औदारिक |
वैक्रियिक |
आहारक |
तैजस |
कार्मण |
153 |
मन:पर्यय |
3,4 |
औदारिक |
वैक्रियिक |
× |
तैजस |
कार्मण |
155 |
केवलज्ञान |
3 |
औदारिक |
× |
× |
तैजस |
कार्मण |
8 |
संयम मार्गणा― |
||||||
156 |
संयत सा.सामायिक, छेदोपस्थापन, परिहार, सूक्ष्म |
3,4 |
औदारिक |
वैक्रियिक |
आहारक |
तैजस |
कार्मण |
157 |
यथाख्यात |
3 |
औदारिक |
× |
× |
तैजस |
कार्मण |
156 |
संयतासंयत |
3,4 |
औदारिक |
वैक्रियिक |
× |
तैजस |
कार्मण |
158 |
असंयत |
2,3,4 |
औदारिक |
वैक्रियिक |
× |
तैजस |
कार्मण |
9 |
दर्शन मार्गणा― |
||||||
159 |
चक्षु अचक्षु दर्शन |
2,3,4 |
औदारिक |
वैक्रियिक |
आहारक |
तैजस |
कार्मण |
159 |
अवधि |
2,3,4 |
औदारिक |
वैक्रियिक |
आहारक |
तैजस |
कार्मण |
160 |
केवलदर्शन |
3 |
औदारिक |
× |
× |
तैजस |
कार्मण |
10 |
लेश्या मार्गणा― |
||||||
161 |
कृष्ण, नील, कापोत |
2,3,4 |
औदारिक |
वैक्रियिक |
× |
तैजस |
कार्मण |
161 |
पीत, पद्म, शुक्ल |
2,3,4 |
औदारिक |
वैक्रियिक |
आहारक |
तैजस |
कार्मण |
11 |
भव्यत्व मार्गणा― |
||||||
162 |
भव्य |
2,3,4 |
औदारिक |
वैक्रियिक |
आहारक |
तैजस |
कार्मण |
162 |
अभव्य |
2,3,4 |
औदारिक |
वैक्रियिक |
× |
तैजस |
कार्मण |
12 |
सम्यक्त्व मार्गणा― |
||||||
163 |
सम्यग्दृष्टि सामान्य |
2,3,4 |
औदारिक |
वैक्रियिक |
आहारक |
तैजस |
कार्मण |
163 |
क्षायिक, उपशम, वेदक |
2,3,4 |
औदारिक |
वैक्रियिक |
आहारक |
तैजस |
कार्मण |
163 |
सासादन |
2,3,4 |
औदारिक |
वैक्रियिक |
× |
तैजस |
कार्मण |
164 |
मिश्र |
3,4 |
औदारिक |
वैक्रियिक |
× |
तैजस |
कार्मण |
163 |
मिथ्यादृष्टि |
2,3,4 |
औदारिक |
वैक्रियिक |
× |
तैजस |
कार्मण |
13 |
संज्ञी मार्गणा― |
||||||
165 |
संज्ञी |
2,3,4 |
औदारिक |
वैक्रियिक |
आहारक |
तैजस |
कार्मण |
165 |
असंज्ञी |
2,3,4 |
औदारिक |
वैक्रियिक |
× |
तैजस |
कार्मण |
14 |
आहारक मार्गणा― |
||||||
166 |
आहारक |
3,4 |
औदारिक |
वैक्रियिक |
आहारक |
तैजस |
कार्मण |
166 |
अनाहारक |
2,3 |
औदारिक |
× |
× |
तैजस |
कार्मण |