वृद्ध: Difference between revisions
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<p><span class="GRef"> भगवती आराधना/1070/1096 </span><span class="PrakritGatha">थेरा वा तरुणा वा वुढ्ढा सीलेहिं होंति वुढ्ढीहिं । थेरा वा तरुणा वा तरुणा सीलेहिं तरुणेहिं ।1070 ।</span> = <span class="HindiText">मनुष्य वृद्ध हो अथवा तरुण यदि उसके क्षमा आदि शील गुण वृद्धिगत हैं तो वह वृद्ध है और यदि ये गुण वृद्धिगत नहीं हैं तो वह तरुण है । (केवल वय अधिक होने से वृद्ध नहीं होता ।) </span><br /> | <p><span class="GRef"> भगवती आराधना/1070/1096 </span><span class="PrakritGatha">थेरा वा तरुणा वा वुढ्ढा सीलेहिं होंति वुढ्ढीहिं । थेरा वा तरुणा वा तरुणा सीलेहिं तरुणेहिं ।1070 ।</span> = <span class="HindiText">मनुष्य वृद्ध हो अथवा तरुण यदि उसके क्षमा आदि शील गुण वृद्धिगत हैं तो वह वृद्ध है और यदि ये गुण वृद्धिगत नहीं हैं तो वह तरुण है । (केवल वय अधिक होने से वृद्ध नहीं होता ।) </span><br /> | ||
<span class="GRef"> ज्ञानार्णव/15/4, 5, 10 </span><span class="SanskritGatha">स्वतत्वनिकषोद्भूतं विवेकालोकवर्द्धितम् । येषां बोधमयं चक्षुस्ते वृद्धा विदुषां मताः ।4। तपःश्रुतधृतिध्यानविवेकयमसंयमैः । ये वृद्धास्तेऽत्र शस्यंते न पुनः पलितांकुरैः ।5। हीनाचरणसंभ्रांतो वृद्धोऽपि तरुणायते । तरुणोऽपि सतां धत्ते श्रियं सत्संगवासितः ।10।</span> = <span class="HindiText">जिनके आत्मतत्त्वरूप कसौटी से उत्पन्न भेदज्ञानरूप आलोक से बढ़ाया हुआ ज्ञानरूपी नेत्र है उनको विद्वानों ने वृद्ध कहा है ।4 । जो मुनि तप, शास्त्राध्ययन, धैर्य, विवेक (भेदज्ञान), यम तथा संयमादिक से वृद्ध अर्थात् बढ़े हुए हैं वे ही वृद्ध होते हैं । केवल अवस्था मात्र अधिक होने से या केश सफेद होने से हो कोई वृद्ध नहीं होता ।5 । जो वृद्ध होकर भी हीनाचरणों से व्याकुल हो भ्रमता फिरे वह तरुण है और सत्संगति से रहता है वह तरुण होने पर भी सत्पुरुषों की सी प्रतिष्ठा पाता है ।10 । </span><br /> | <span class="GRef"> ज्ञानार्णव/15/4, 5, 10 </span><span class="SanskritGatha">स्वतत्वनिकषोद्भूतं विवेकालोकवर्द्धितम् । येषां बोधमयं चक्षुस्ते वृद्धा विदुषां मताः ।4। तपःश्रुतधृतिध्यानविवेकयमसंयमैः । ये वृद्धास्तेऽत्र शस्यंते न पुनः पलितांकुरैः ।5। हीनाचरणसंभ्रांतो वृद्धोऽपि तरुणायते । तरुणोऽपि सतां धत्ते श्रियं सत्संगवासितः ।10।</span> = <span class="HindiText">जिनके आत्मतत्त्वरूप कसौटी से उत्पन्न भेदज्ञानरूप आलोक से बढ़ाया हुआ ज्ञानरूपी नेत्र है उनको विद्वानों ने वृद्ध कहा है ।4 । जो मुनि तप, शास्त्राध्ययन, धैर्य, विवेक (भेदज्ञान), यम तथा संयमादिक से वृद्ध अर्थात् बढ़े हुए हैं वे ही वृद्ध होते हैं । केवल अवस्था मात्र अधिक होने से या केश सफेद होने से हो कोई वृद्ध नहीं होता ।5 । जो वृद्ध होकर भी हीनाचरणों से व्याकुल हो भ्रमता फिरे वह तरुण है और सत्संगति से रहता है वह तरुण होने पर भी सत्पुरुषों की सी प्रतिष्ठा पाता है ।10 । </span><br /> | ||
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== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<p id="1"> (1) कोशल देश का एक ग्राम । ब्राह्मण मृगायण इसी ग्राम का निवासी था । <span class="GRef"> महापुराण 59.207 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1"> (1) कोशल देश का एक ग्राम । ब्राह्मण मृगायण इसी ग्राम का निवासी था । <span class="GRef"> महापुराण 59.207 </span></p> | ||
<p id="2">(2) जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में मगध देश का एक ग्राम । संयमी भगदत्त और भवदेव इसी ग्राम के थे । <span class="GRef"> महापुराण 76.152 </span></p> | <p id="2">(2) जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में मगध देश का एक ग्राम । संयमी भगदत्त और भवदेव इसी ग्राम के थे । <span class="GRef"> महापुराण 76.152 </span></p> | ||
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Revision as of 16:57, 14 November 2020
सिद्धांतकोष से
भगवती आराधना/1070/1096 थेरा वा तरुणा वा वुढ्ढा सीलेहिं होंति वुढ्ढीहिं । थेरा वा तरुणा वा तरुणा सीलेहिं तरुणेहिं ।1070 । = मनुष्य वृद्ध हो अथवा तरुण यदि उसके क्षमा आदि शील गुण वृद्धिगत हैं तो वह वृद्ध है और यदि ये गुण वृद्धिगत नहीं हैं तो वह तरुण है । (केवल वय अधिक होने से वृद्ध नहीं होता ।)
ज्ञानार्णव/15/4, 5, 10 स्वतत्वनिकषोद्भूतं विवेकालोकवर्द्धितम् । येषां बोधमयं चक्षुस्ते वृद्धा विदुषां मताः ।4। तपःश्रुतधृतिध्यानविवेकयमसंयमैः । ये वृद्धास्तेऽत्र शस्यंते न पुनः पलितांकुरैः ।5। हीनाचरणसंभ्रांतो वृद्धोऽपि तरुणायते । तरुणोऽपि सतां धत्ते श्रियं सत्संगवासितः ।10। = जिनके आत्मतत्त्वरूप कसौटी से उत्पन्न भेदज्ञानरूप आलोक से बढ़ाया हुआ ज्ञानरूपी नेत्र है उनको विद्वानों ने वृद्ध कहा है ।4 । जो मुनि तप, शास्त्राध्ययन, धैर्य, विवेक (भेदज्ञान), यम तथा संयमादिक से वृद्ध अर्थात् बढ़े हुए हैं वे ही वृद्ध होते हैं । केवल अवस्था मात्र अधिक होने से या केश सफेद होने से हो कोई वृद्ध नहीं होता ।5 । जो वृद्ध होकर भी हीनाचरणों से व्याकुल हो भ्रमता फिरे वह तरुण है और सत्संगति से रहता है वह तरुण होने पर भी सत्पुरुषों की सी प्रतिष्ठा पाता है ।10 ।
भगवती आराधना / विजयोदया टीका/116/275/8 वाचनामनुयोगं वा शिक्षयतः अवमरत्नत्रयस्याभ्युत्थातव्यं तन्मूलेऽध्ययनं कृर्वद्भिः सर्वैरेव । = जो ग्रंथ और अर्थ को पढ़ाता है अथवा सदादि अनुयोगों का शिक्षण देता है, वह व्यक्ति यदि अपने से रत्नत्रय में हीन भी हो तो भी उसके आने पर जो जो उसके पास अध्ययन करते हैं वे सर्वजन खड़े हो जावें ।
प्रवचनसार/ ता./वृ./263/354/15 यद्यपि चरित्र गुणेनाधिका न भवंति तपसा वा तथापि सम्यग्ज्ञानगुणेन ज्येष्ठत्वाच्छंतविनयार्थमभ्युत्थेयाः ।
प्रवचनसार/ ता./वृ./267/358/17 यदि बहुश्रुतानां पार्श्वे ज्ञानादिगुणवृद्धयर्थ स्वयं चारित्रगुणाधिकाऽपि वंदनादिक्रियासु वर्तंते तदा दोषो नास्ति । यदि पुनः केवलं ख्यातिपूजालाभार्थं वर्तंते तदातिप्रसंगाद्दोषो भवति । = चारित्र व तप में अधिक न होते हुए भी सम्यग्ज्ञान गुण से ज्येष्ठ होने के कारण श्रुत की विनय के अर्थ वह अभ्युत्थानादि विनय के योग्य है । यदि कोई चारित्र गुण में अधिक होते हुए भी ज्ञानादि गुण की वृद्धि के अर्थ बहुश्रुत जनों के पास वंदनादि क्रिया में वर्तता है तो कोई दोष नहीं है । परंतु यदि केवल ख्याति पूजा व लोभ के अर्थ ऐसा करता है तब अति दोष का प्रसंग प्राप्त होता है ।
प्रवचनसार मू./266 गुणदोधिगस्स विणयं पडिच्छगो जो वि होमि समणो त्ति. । होज्जं गुणधरो जदि सो होदि अणंतसंसारी । = जो श्रमण्य में अधिक गुण वाले हैं तथापि हीन गुण वालों के प्रति (वंदनादि) क्रियाओं में वर्तते हैं वे मिथ्या उपयुक्त होते हुए चारित्र से भ्रष्ट होते हैं ।
पुराणकोष से
(1) कोशल देश का एक ग्राम । ब्राह्मण मृगायण इसी ग्राम का निवासी था । महापुराण 59.207
(2) जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में मगध देश का एक ग्राम । संयमी भगदत्त और भवदेव इसी ग्राम के थे । महापुराण 76.152