सर्वभूषण: Difference between revisions
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<p> एक केवली जिन । ये विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी में गुंजा नगर के राजा सिंहविक्रम और रानी श्री के पुत्र थे । इनकी आठ सौ स्त्रियां थी, जिनमें किरणमंडला के सोते समय बार-बार हेमरथ का नामोच्चारण करने से इन्होंने वैराग्य धारण कर लिया था और किरणमंडला भी साध्वी हो गयी थी । किरणमंडला मरकर विद्युद्वक्त्रा राक्षसी हुई । इस राक्षसी ने इन पर पूर्व वैर के कारण अनेक उपसर्ग किये किंतु उपसर्गों को जीतकर ये केवलज्ञानी हो गये । इनके केवलज्ञान की पूजा के लिए मेषकेतु देव आया जिसने सीता की अग्नि परीक्षा में सहायता की थी । <span class="GRef"> पद्मपुराण 1.97, 104, 103-117, 127-128 </span></p> | <div class="HindiText"> <p> एक केवली जिन । ये विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी में गुंजा नगर के राजा सिंहविक्रम और रानी श्री के पुत्र थे । इनकी आठ सौ स्त्रियां थी, जिनमें किरणमंडला के सोते समय बार-बार हेमरथ का नामोच्चारण करने से इन्होंने वैराग्य धारण कर लिया था और किरणमंडला भी साध्वी हो गयी थी । किरणमंडला मरकर विद्युद्वक्त्रा राक्षसी हुई । इस राक्षसी ने इन पर पूर्व वैर के कारण अनेक उपसर्ग किये किंतु उपसर्गों को जीतकर ये केवलज्ञानी हो गये । इनके केवलज्ञान की पूजा के लिए मेषकेतु देव आया जिसने सीता की अग्नि परीक्षा में सहायता की थी । <span class="GRef"> पद्मपुराण 1.97, 104, 103-117, 127-128 </span></p> | ||
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Revision as of 16:58, 14 November 2020
एक केवली जिन । ये विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी में गुंजा नगर के राजा सिंहविक्रम और रानी श्री के पुत्र थे । इनकी आठ सौ स्त्रियां थी, जिनमें किरणमंडला के सोते समय बार-बार हेमरथ का नामोच्चारण करने से इन्होंने वैराग्य धारण कर लिया था और किरणमंडला भी साध्वी हो गयी थी । किरणमंडला मरकर विद्युद्वक्त्रा राक्षसी हुई । इस राक्षसी ने इन पर पूर्व वैर के कारण अनेक उपसर्ग किये किंतु उपसर्गों को जीतकर ये केवलज्ञानी हो गये । इनके केवलज्ञान की पूजा के लिए मेषकेतु देव आया जिसने सीता की अग्नि परीक्षा में सहायता की थी । पद्मपुराण 1.97, 104, 103-117, 127-128