समयसार - आत्मख्याति टीका - कलश 46: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
No edit summary |
||
Line 14: | Line 14: | ||
* [[ आचार्य कुंद्कुंद]] | * [[ आचार्य कुंद्कुंद]] | ||
* [[ आचार्य अमृतचंद्र]] | * [[ आचार्य अमृतचंद्र]] | ||
Latest revision as of 14:53, 10 December 2013
अथ जीवाजीवावेव कर्तृकर्मवेषेण प्रविशत:
( मन्दाक्रान्ता )
एक: कर्ता चिदहमिह मे कर्म कोपादयोऽमी
इत्यज्ञानां शमयदभित: कर्तृकर्मप्रवृत्तिम् ।
ज्ञानज्योति: स्फुरति परमोदात्तमत्यन्तधीरं
साक्षात्कुर्वन्निरुपधिपृथग्द्रव्यनिर्भासि विश्वम् ॥४६॥