पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 137 - तात्पर्य-वृत्ति - हिंदी: Difference between revisions
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<p> | <p><span class="AnvayArth">चरिया पमादबहुला</span> निष्प्रमाद चैतन्य चमत्कारमय परिणति की प्रतिबंधिनी प्रमाद की बहुलता-वाली चर्या, परिणति, चारित्र की परिणति; कालुस्सं अकलुष चैतन्य चमत्कार मात्र से विपरीत कलुषता-रूप परिणति, <span class="AnvayArth">लोलदा य विसयेसु</span> विषयातीत आत्म-सुख-संवित्ति से प्रतिकूल विषयों में लोलुपता-रूप परिणति, <span class="AnvayArth">परपरिदाव</span> पर परिताप से रहित शुद्धात्मा की अनुभूति से विलक्षण पर परिताप (दूसरों को कष्ट देने) रूप परिणति, <span class="AnvayArth">अपवादो</span> तथा निरपवाद स्व-संवित्ति से विपरीत पर का अपवाद करनेरूप परिणति, <span class="AnvayArth">पापस्स य आसवं कुणदि</span> यह पाँच प्रकार की परिणति द्रव्य पापास्रव की कारण-भूत भाव पापास्रव कहलाती है; भाव पापास्रव के निमित्तभूत मन, वचन, काय रूप योग द्वार से आए हुए द्रव्य-कर्म द्रव्य-पापास्रव हैं, ऐसा सूत्रार्थ है ॥१४७॥</p> | ||
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Revision as of 16:51, 24 August 2021
चरिया पमादबहुला निष्प्रमाद चैतन्य चमत्कारमय परिणति की प्रतिबंधिनी प्रमाद की बहुलता-वाली चर्या, परिणति, चारित्र की परिणति; कालुस्सं अकलुष चैतन्य चमत्कार मात्र से विपरीत कलुषता-रूप परिणति, लोलदा य विसयेसु विषयातीत आत्म-सुख-संवित्ति से प्रतिकूल विषयों में लोलुपता-रूप परिणति, परपरिदाव पर परिताप से रहित शुद्धात्मा की अनुभूति से विलक्षण पर परिताप (दूसरों को कष्ट देने) रूप परिणति, अपवादो तथा निरपवाद स्व-संवित्ति से विपरीत पर का अपवाद करनेरूप परिणति, पापस्स य आसवं कुणदि यह पाँच प्रकार की परिणति द्रव्य पापास्रव की कारण-भूत भाव पापास्रव कहलाती है; भाव पापास्रव के निमित्तभूत मन, वचन, काय रूप योग द्वार से आए हुए द्रव्य-कर्म द्रव्य-पापास्रव हैं, ऐसा सूत्रार्थ है ॥१४७॥