पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 19 - अर्थ: Difference between revisions
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<p> | <p><span class="AnvayArth">एवं</span> इसप्रकार <span class="AnvayArth">जीवस्य</span> जीव को <span class="AnvayArth">सतः विनाशः</span> सत् का विनाश और<span class="AnvayArth">असतः उत्पादः</span> असत् का उत्पाद <span class="AnvayArth">न अस्ति</span> नहीं है; ('देव जन्मता है और मनुष्य मरता है' - ऐसा कहा जाता है उसका यह कारण है कि) <span class="AnvayArth">जीवानाम्</span> जीवों की <span class="AnvayArth">देवः मनुष्यः</span> देव, मनुष्य <span class="AnvayArth">इति गतिनाम</span> ऐसा गति नामकर्म <span class="AnvayArth">तावत्</span> उतने ही काल का होता है ।</p> | ||
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Revision as of 16:51, 24 August 2021
एवं इसप्रकार जीवस्य जीव को सतः विनाशः सत् का विनाश औरअसतः उत्पादः असत् का उत्पाद न अस्ति नहीं है; ('देव जन्मता है और मनुष्य मरता है' - ऐसा कहा जाता है उसका यह कारण है कि) जीवानाम् जीवों की देवः मनुष्यः देव, मनुष्य इति गतिनाम ऐसा गति नामकर्म तावत् उतने ही काल का होता है ।