पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 29 - तात्पर्य-वृत्ति - हिंदी: Difference between revisions
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<p>अब जीवत्व गुण का व्याख्यान करते हैं--</p> | <p>अब जीवत्व गुण का व्याख्यान करते हैं--</p> | ||
<p> | <p><span class="AnvayArth">पाणेहिं</span> इत्यादि पदखण्डना रूप से व्याख्यान करते हैं -- <span class="AnvayArth">पाणेहिं चदुहिं जीवदि</span> यद्यपि शुद्ध निश्चय से शुद्ध चैतन्य आदि प्राणों से जीता है; तथापि अनुपचरित असद्भूत व्यवहार से द्रव्यरूप तथा अशुद्ध निश्चयनय से भावरूप चार प्राणों द्वारा संसार अवस्था में वर्तमान काल में जीता है; <span class="AnvayArth">जीविस्सदि</span> भविष्यकाल में जिएगा। <span class="AnvayArth">जो हु</span> जो स्पष्ट रूप से <span class="AnvayArth">जीविदो पुव्वं</span> पूर्वकाल में जीता था, <span class="AnvayArth">सो जीवो</span> वह तीनों काल में भी चार प्राण से सहित जीव है। <span class="AnvayArth">पाणा पुण बल मिंदियमाउ उस्सासो</span> वे पूर्वोक्त द्रव्य-भाव प्राण भी अभेद से बल, इन्द्रिय, आयु और उच्छ्वास लक्षण रूप हैं । इस सूत्र में मन, वचन, काय के निरोधपूर्वक पंचेन्द्रिय विषयों से व्यावर्तन के बल द्वारा शुद्ध चैतन्यादि शुद्ध प्राण सहित शुद्ध जीवास्तिकाय ही उपादेय रूप से ध्यान करने योग्य है -- यह भावार्थ है ॥३०॥</p> | ||
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Revision as of 16:51, 24 August 2021
अब जीवत्व गुण का व्याख्यान करते हैं--
पाणेहिं इत्यादि पदखण्डना रूप से व्याख्यान करते हैं -- पाणेहिं चदुहिं जीवदि यद्यपि शुद्ध निश्चय से शुद्ध चैतन्य आदि प्राणों से जीता है; तथापि अनुपचरित असद्भूत व्यवहार से द्रव्यरूप तथा अशुद्ध निश्चयनय से भावरूप चार प्राणों द्वारा संसार अवस्था में वर्तमान काल में जीता है; जीविस्सदि भविष्यकाल में जिएगा। जो हु जो स्पष्ट रूप से जीविदो पुव्वं पूर्वकाल में जीता था, सो जीवो वह तीनों काल में भी चार प्राण से सहित जीव है। पाणा पुण बल मिंदियमाउ उस्सासो वे पूर्वोक्त द्रव्य-भाव प्राण भी अभेद से बल, इन्द्रिय, आयु और उच्छ्वास लक्षण रूप हैं । इस सूत्र में मन, वचन, काय के निरोधपूर्वक पंचेन्द्रिय विषयों से व्यावर्तन के बल द्वारा शुद्ध चैतन्यादि शुद्ध प्राण सहित शुद्ध जीवास्तिकाय ही उपादेय रूप से ध्यान करने योग्य है -- यह भावार्थ है ॥३०॥