पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 6 - तात्पर्य-वृत्ति - हिंदी: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<div class="G_HindiText"> | <div class="G_HindiText"> | ||
<p>अब पंचास्तिकायों की और काल की द्रव्य संज्ञा कहते हैं --</p> | <p>अब पंचास्तिकायों की और काल की द्रव्य संज्ञा कहते हैं --</p> | ||
<p> | <p><span class="AnvayArth">ते चेव अत्थिकाया तिक्कालियभावपरिणदा णिच्चा</span> वे ही पूर्वोक्त पंचास्तिकाय यद्यपि पर्यायार्थिक-नय से त्रैकालिक भाव परिणत / त्रिकालवर्ती पर्यायों रूप से परिणमित होते हुए क्षणिक, अनित्य, विनश्वर हैं; तथापि द्रव्यार्थिकनय से नित्य ही हैं । इसप्रकार द्रव्यार्थिक-पर्यायार्थिकनय की अपेक्षा नित्यानित्यात्मक होते हुए <span class="AnvayArth">गच्छंति दवियभावं</span> द्रव्यभाव को जाते हैं द्रव्य नाम प्राप्त करते हैं । और कैसे होते हुए वे द्रव्य नाम पाते हैं? <span class="AnvayArth">परियट्टणलिंगसंजुत्ता</span> अग्नि का धुऐ के समान जीव, पुद्गलादि का परिणमन ही है कार्यभूत लिंग, चिंह, गमक, ज्ञापक, सूचक जिसका वह है परिवर्तन लिंग कालाणु, द्रव्य काल; उससे सहित होते हुए द्रव्य नाम प्राप्त करते हैं ।</p> | ||
<p></p> | <p></p> | ||
<p>प्रश्न - काल द्रव्य से संयुक्त - ऐसा कहना चाहिए; परिवर्तन लिंग से सहित-ऐसा अव्यक्त वचन किसलिए कहा गया?</p> | <p>प्रश्न - काल द्रव्य से संयुक्त - ऐसा कहना चाहिए; परिवर्तन लिंग से सहित-ऐसा अव्यक्त वचन किसलिए कहा गया?</p> |
Revision as of 16:51, 24 August 2021
अब पंचास्तिकायों की और काल की द्रव्य संज्ञा कहते हैं --
ते चेव अत्थिकाया तिक्कालियभावपरिणदा णिच्चा वे ही पूर्वोक्त पंचास्तिकाय यद्यपि पर्यायार्थिक-नय से त्रैकालिक भाव परिणत / त्रिकालवर्ती पर्यायों रूप से परिणमित होते हुए क्षणिक, अनित्य, विनश्वर हैं; तथापि द्रव्यार्थिकनय से नित्य ही हैं । इसप्रकार द्रव्यार्थिक-पर्यायार्थिकनय की अपेक्षा नित्यानित्यात्मक होते हुए गच्छंति दवियभावं द्रव्यभाव को जाते हैं द्रव्य नाम प्राप्त करते हैं । और कैसे होते हुए वे द्रव्य नाम पाते हैं? परियट्टणलिंगसंजुत्ता अग्नि का धुऐ के समान जीव, पुद्गलादि का परिणमन ही है कार्यभूत लिंग, चिंह, गमक, ज्ञापक, सूचक जिसका वह है परिवर्तन लिंग कालाणु, द्रव्य काल; उससे सहित होते हुए द्रव्य नाम प्राप्त करते हैं ।
प्रश्न - काल द्रव्य से संयुक्त - ऐसा कहना चाहिए; परिवर्तन लिंग से सहित-ऐसा अव्यक्त वचन किसलिए कहा गया?
उत्तर - ऐसा नहीं है। पंचास्तिकाय के प्रकरण में काल की मुख्यता नहीं है; क्योंकि वह पदार्थों की नवीन-पुरानी परिणतिरूप कार्यलिंग द्वारा ज्ञात होता है, उस कारण से ही परिवर्तन लिंग -- ऐसा कहा गया है।
इन छह द्रव्यों के बीच में शुद्ध निश्चय से दृष्ट, श्रुत, अनुभूत, आहार-भय-मैथुन-परिग्रहादि संज्ञादि समस्त पर-द्रव्य के आलम्बन से उत्पन्न संकल्प-विकल्प से शून्य श्रद्धान-ज्ञान-अनुष्ठान-रूप अभेद रत्नत्रय लक्षण निर्विकल्प समाधि से उत्पन्न वीतराग सहज अपूर्व परमानंदमय स्वसंवेदन ज्ञान द्वारा गम्य, प्राप्त, भरितावस्थ अपने देह में विद्यमान शुद्ध जीवास्तिकाय नामक जीव-द्रव्य ही उपादेय है -- यह भावार्थ है ॥६॥
इसप्रकार कालसहित पंचास्तिकायों की संज्ञा के कथनरूप से गाथा पूर्ण हुई।