पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 162 - तात्पर्य-वृत्ति - हिंदी: Difference between revisions
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<p><span class="AnvayArth">दंसणणाणचरित्ताणि मोक्खमग्गोत्ति से विदव्वाणि</span> दर्शन-ज्ञान-चारित्र मोक्षमार्ग है, इसकारण सेवन करना चाहिए । ऐसा उपदेश किनने दिया है ? <span class="AnvayArth">साधूहिं इदं भणिदं</span> साधुओं ने ऐसा उपदेश दिया है / कहा है । <span class="AnvayArth">तेहिं दु बंधो वा मोक्खो वा</span> परंतु उन पराश्रित से बंध है और स्वाश्रित से मोक्ष है ।</p> | <p><span class="AnvayArth">[दंसणणाणचरित्ताणि मोक्खमग्गोत्ति से विदव्वाणि]</span> दर्शन-ज्ञान-चारित्र मोक्षमार्ग है, इसकारण सेवन करना चाहिए । ऐसा उपदेश किनने दिया है ? <span class="AnvayArth">[साधूहिं इदं भणिदं]</span> साधुओं ने ऐसा उपदेश दिया है / कहा है । <span class="AnvayArth">[तेहिं दु बंधो वा मोक्खो वा]</span> परंतु उन पराश्रित से बंध है और स्वाश्रित से मोक्ष है ।</p> | ||
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<p>यहाँ विशेष कहते हैं शुद्धात्मा के आश्रित सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र मोक्ष के कारण हैं और पराश्रित बंध के कारण हैं। किस दृष्टांत से? यदि ऐसा प्रश्न हो तो कहते हैंजैसे स्वभाव से शीतल होने पर भी घी बाद में अग्नि-संयोग से दाह का कारण होता है; उसीप्रकार स्वभाव से मुक्ति के कारण होने पर भी पंचपरमेष्ठी आदि प्रशस्त द्रव्य के आश्रित होने पर वे भी साक्षात् पुण्यबंध के कारण होते हैं तथा मिथ्यात्व और विषय-कषाय के निमित्तभूत परद्रव्य के आश्रित होने पर पापबंध के कारण भी होते हैं । इससे ज्ञात होता है कि जीवस्वभाव में नियत चारित्र मोक्षमार्ग है ॥१७२॥</p> | <p>यहाँ विशेष कहते हैं शुद्धात्मा के आश्रित सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र मोक्ष के कारण हैं और पराश्रित बंध के कारण हैं। किस दृष्टांत से? यदि ऐसा प्रश्न हो तो कहते हैंजैसे स्वभाव से शीतल होने पर भी घी बाद में अग्नि-संयोग से दाह का कारण होता है; उसीप्रकार स्वभाव से मुक्ति के कारण होने पर भी पंचपरमेष्ठी आदि प्रशस्त द्रव्य के आश्रित होने पर वे भी साक्षात् पुण्यबंध के कारण होते हैं तथा मिथ्यात्व और विषय-कषाय के निमित्तभूत परद्रव्य के आश्रित होने पर पापबंध के कारण भी होते हैं । इससे ज्ञात होता है कि जीवस्वभाव में नियत चारित्र मोक्षमार्ग है ॥१७२॥</p> |
Revision as of 17:06, 24 August 2021
[दंसणणाणचरित्ताणि मोक्खमग्गोत्ति से विदव्वाणि] दर्शन-ज्ञान-चारित्र मोक्षमार्ग है, इसकारण सेवन करना चाहिए । ऐसा उपदेश किनने दिया है ? [साधूहिं इदं भणिदं] साधुओं ने ऐसा उपदेश दिया है / कहा है । [तेहिं दु बंधो वा मोक्खो वा] परंतु उन पराश्रित से बंध है और स्वाश्रित से मोक्ष है ।
यहाँ विशेष कहते हैं शुद्धात्मा के आश्रित सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र मोक्ष के कारण हैं और पराश्रित बंध के कारण हैं। किस दृष्टांत से? यदि ऐसा प्रश्न हो तो कहते हैंजैसे स्वभाव से शीतल होने पर भी घी बाद में अग्नि-संयोग से दाह का कारण होता है; उसीप्रकार स्वभाव से मुक्ति के कारण होने पर भी पंचपरमेष्ठी आदि प्रशस्त द्रव्य के आश्रित होने पर वे भी साक्षात् पुण्यबंध के कारण होते हैं तथा मिथ्यात्व और विषय-कषाय के निमित्तभूत परद्रव्य के आश्रित होने पर पापबंध के कारण भी होते हैं । इससे ज्ञात होता है कि जीवस्वभाव में नियत चारित्र मोक्षमार्ग है ॥१७२॥
इसप्रकार शुद्धाशुद्ध रत्नत्रय द्वारा यथाक्रम से मोक्ष और पुण्यबंध होता है इस कथनरूप से गाथा पूर्ण हुई ।
तत्पश्चात् सूक्ष्म परसमय के व्याख्यान से सम्बन्धित पाँच गाथायें हैं । वहाँ एक सूत्र गाथा, उसका विवरण तीन गाथाओं में और उसके बाद एक उपसंहार गाथा -- इसप्रकार नवमें स्थल में समुदाय पातनिका है । वह इसप्रकार :-