प्रियमित्र: Difference between revisions
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Revision as of 08:51, 24 August 2022
== सिद्धांतकोष से == एक राजपुत्र था । ( महापुराण/74/234-240 ) यह वर्धमान भगवान् का पूर्वका चौथा भव है - देखें वर्धमान - 5
पुराणकोष से
(1) छठे नारायण पुंडरीक के पूर्वभव का नाम । पद्मपुराण 20. 207, 210
(2) अयोध्या के इक्ष्वाकुवंशी तीसरे चक्रवर्ती मघवा का पुत्र । इसने पिता से साम्राज्य प्राप्त किया था । महापुराण 61.88,99
(3) धनदत्त और उसकी पत्नी नंदयशा के नौ पुत्रों में आठवाँँ पुत्र । आयु के अंत में मरकर यह अंधकवृष्णि और उसकी पत्नी सुभद्रा का पूरण नाम का पुत्र हुआ । महापुराण 70.186-998, हरिवंशपुराण 18. 13-14, 115-124
(4) एक अवधिज्ञानी मुनि । इनसे तीर्थंकर महावीर के पूर्वभव के जीव विद्याधर राजा कनकोज्ज्वल ने दीक्षा ली थी । महापुराण 74.223, 76.541
(5) पुंडरीकिणी नगरी के राजा सुमित्र और उसकी सुव्रता नामा रानी का चक्रवर्ती पुत्र । युवा अवस्था में पिता का पद प्राप्त करने के पश्चात् इसके चौदह रत्न और नौ निधियाँ स्वयंमेव प्रकट हुई थी । दिग्विजय में इसने अनेक राजाओं को पराजित किया था । बत्तीस हजार मुकुटबद्ध नृप इसे सिर झुकाते थे । आयु के अंत में समस्त वैभव का त्याग कर इसने क्षेमंकर मुनि से धर्मोपदेश सुना और सर्वमित्र नामक पुत्र को राज्य देकर एक हजार राजाओं के साथ जिनदीक्षा ले ली । इसके पश्चात् निर्दोष संयम पालते हुए समाधिपूर्वक शरीर त्याग कर यह सहस्रार स्वर्ग में उत्पन्न हुआ और वहाँ से च्युत हो छत्रपुर नगर में वहां के राजा नंदिवर्धन और उसकी रानी वीरमती का नंद नामक पुत्र हुआ । यही आगे चलकर तीर्थंकर महावीर हुआ । महापुराण 74.235-243, 277-278, 76.542, वीरवर्द्धमान चरित्र 5.35-53, 72-117, 134-136
(6) त्रिशृंगपुर नगर का निवासी एक सेठ । इसकी पत्नी सोमिनी से नयनसुंदरी नामा एक पुत्री थी जिसे वह युधिष्ठिर को देने का निश्चय कर चुका था, पर लाक्षागृह की घटना के कारण युधिष्ठिर की अनुपस्थिति में उसे नहीं दे सका था । हरिवंशपुराण 45.100-104, पांडवपुराण 13. 110-113