अनक्षरगता भाषा
From जैनकोष
सर्वार्थसिद्धि/5/24/295/2 अनक्षरात्मको द्वींद्रियादीनामतिशयज्ञानस्वरूपप्रतिपादनहेतुः। = जिससे उनके सातिशय ज्ञान का पता चलता है ऐसे द्वि इंद्रिय आदि जीवों के शब्द अनक्षरात्मक शब्द हैं। ( राजवार्तिक/5/24/3/485/25 )।
धवला 13/5,5,26/221/10 तत्थ अणक्खरगया बीइंदियप्पहुडि जाव असण्णिपंचिंदियाणं मुहसमुब्भुदा बालमूअसण्णिपंचिंदियभासा च। = द्वींद्रिय से लेकर असंज्ञी पंचेंद्रिय पर्याप्त जीवों के मुख से उत्पन्न हुई भाषा तथा बालक और मूक संज्ञी पंचेंद्रिय जीवों की भाषा भी अनक्षरात्मक भाषा है।
पंचास्तिकाय / तात्पर्यवृत्ति/79/135/7 अनक्षरात्मको द्वींद्रियादिशब्दरूपो दिव्यध्वनिरूपश्च। = अनक्षरात्मक शब्द द्वींद्रियादि के शब्द रूप और दिव्यध्वनि रूप होते हैं।
देखें भाषा - 3 ।