पद्मसेन
From जैनकोष
- म.पु./५९/श्लोक पश्चिम धातकीखण्ड में रम्यकावती देश के महानगर का राजा था (२-३)। दीक्षित होकर ११ अंगों का पारगामी हो गया। तथा तीथकर प्रकृति का बन्ध कर अन्त में समाधिपूर्वक सहस्रार स्वर्ग में इन्द्रपद प्राप्त किया (८-१०)। यह विमलनाथ भगवान् का पूर्व का दूसरा भव है - देखें - विमलनाथ।
- पचस्तूपसंघ की गुर्वावली के अनुसार ( देखें - इतिहास / ५ / १७ ) आप धवलाकार वीरसेन स्वामी के शिष्य थे। (म.पु./प्र./३१/पं.)।
- पुन्नाटसंघ की गुर्वावली के अनुसार आप वीरवित के शिष्य तथा व्याघ्रहस्त के गुरु थे। - देखें - इतिहास / ५ / १८ ।