पद्मोत्तर
From जैनकोष
- भद्रशाल वनस्थ एक दिग्गजेन्द्र पर्वत - देखें - लोक / ५ / ३ ;
- कुण्डल पर्वतस्थ रजतप्रभ कूट का स्वामी नागेन्द्रदेव - देखें - लोक / ५ / १२ ;
- रुचक पर्वत के नन्द्यावर्त कूट पर रहनेवाला देव - देखें - लोक / ५ / १३ ;
- म.पु./५८/ श्लोक पुष्करार्धद्वीप के वत्सकावती देश में रत्नपुर नगर का राजा था (२)। दीक्षित होकर ११ अंगों का पारगामी हो गया। तीथकर प्रकृति का बन्ध कर आयु के अन्त में संन्यासपूर्वक मरणकर महाशुक्र स्वर्ग में उत्पनन हुआ (११-१३)। यह वासुपूज्य भगवान् का दूसरा पूर्वभव है - देखें - वासुपूज्य।