स्वयंप्रभा
From जैनकोष
म.पु./सर्ग/श्लोक स्वर्ग में ललितांगदेव (ऋषभदेव के नवमें भव) की अति प्रिय देवी थी (५/२८६)। यह ललितांगदेव के स्वर्ग से च्युत होने पर अति दुखी हुई (६/५०)। अन्त में पंचपरमेष्ठी के स्मरण पूर्वक स्वर्ग से च्युत हुई (६/५६-५७)। यह श्रेयांस राजा का पूर्व का पाँचवाँ भव है-देखें - श्रेयांस।