बहुरूपिणी
From जैनकोष
== सिद्धांतकोष से == भगवान् नेमीनाथ की यक्षिणी- देखें तीर्थंकर - 5.3 ।
पुराणकोष से
अनेक रूप बनाने की शक्तिशाली एक विद्या । इस पर देवकृत विघ्न नहीं होते । यह विद्या चौबीस दिन में सिद्ध होती है । जिसे यह सिद्ध हो जाती है वह इन्द्र से भी अजेय हो जाता है । इसकी साधना के समय साधक को क्रोधजयी होना पड़ता है । महापुराण 14.141, 70. 3-4, 94, पद्मपुराण 67.6