ग्रन्थ:दर्शनपाहुड़ गाथा 34
From जैनकोष
लद्धूण य मणुयत्तं सहियं तह उत्तमेण गोत्तेण ।
लद्धूण य सम्मत्तं अक्खयसोक्खं२ च मोक्खं च ॥३४॥
लब्ध्वा च मनुजत्वं सहितं तथा उत्तमेन गोत्रेण ।
लब्ध्वा च सम्यक्त्वं अक्षयसुखं च मोक्षं च ॥३४॥
अब कहते हैं कि जो उत्तम गोत्र सहित मनुष्यत्व को पाकर सम्यक्त्व की प्राप्ति से मोक्ष पाते हैं, यह सम्यक्त्व का माहात्म्य है -
प्राप्तकर नरदेह उत्तम कुल सहित यह आतमा ।
सम्यक्त्व लह मुक्ति लहे अर अखय आनन्द परिणमे॥३४॥
भावार्थ - यह सब सम्यक्त्व का माहात्म्य है ॥३४॥