संवाह
From जैनकोष
सिद्धांतकोष से
धवला 13/5,5,63/336/2 यत्र शिरसा धान्यमारोप्यते स संवाह:। =जहाँ पर शिर से लेकर धान्य रखा जाता है उसका नाम संवाह है।
महापुराण/16/173 संवाहस्तु शिरोव्यूढधान्यसंजय इष्यते।173। =जहाँ मस्तक पर्यंत ऊँचे-ऊँचे धान्य के ढेर लगे हों वह संवाहन कहलाता है।
त्रिलोकसार/674-676 संवाह।674।...सिंधुवेलावलयित:।676। =समुद्र की वेला से वेष्टित स्थान संवाह कहलाता है।
पुराणकोष से
नगरों का एक प्रकार । जहाँ मस्तक तक ऊंचे-ऊंचे धान्य के ढेर लगे रहते हैं उसे सवाह नगर कहा जाता है । महापुराण 16.173
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