सर्वार्थसिद्धि
From जैनकोष
(1) पाँच अनुत्तर विमानों में विद्यमान एक इंद्रक विमान । यह अनुत्तर विमानों के बीच में होता है । इसकी पूर्व आदि चार दिशाओं में विजय, वैजयंत, जयंत और अपराजित ये चार विमान स्थित है । यह नौ ग्रैवेयक विमानों के ऊपर रहता है । यहाँ देवों की ऊँचाई एक हाथ की होती है । वे प्रवीचार रहित होते हैं । यह विमान लोक के अंत भाग से बारह योजन नीचा है । इसकी लंबाई, चौड़ाई और गोलाई जंबूद्वीप के बराबर है । यह स्वर्ग के त्रेमठ पटलों के अंत में स्थित है । इस विमान में उत्पन्न होनेवाले जीवों के सब मनोरथ अनायास ही सिद्ध हो जाते हैं । महापुराण 11. 112-114, 61.12, पद्मपुराण 105.170-171 हरिवंशपुराण 4.69, 6. 54, 65
(2) एक पालकी । तीर्थंकर शांतिनाथ इसी में बैठकर संयम धारने करने सहस्राम्र वन गये थे । महापुराण 63.470