मौनाध्ययनवृत्तत्व
From जैनकोष
गर्भाधान से निर्वाण पर्यंत गृहस्थ की त्रेपन क्रियाओं में पैंतीसवीं क्रिया । दीक्षा लेकर उपवास के बाद पारणा करके साधु का शास्त्र समाप्ति पर्यंत मौनपूर्वक अध्ययन करना मौनाध्ययनवृत्तत्व कहलाता है । इसमें मौनी, विनीत, मन-वचन-काय से शुद्ध साधु को गुरु के समीप शास्त्रों का अध्ययन करना होता है । इससे इस लोक में योग्यता की वृद्धि तथा परलोक में सुख की प्राप्ति होती है । महापुराण 38.58, 63, 161-163