व्याप्ति
From जैनकोष
न्या.दी./३/६४/१०४/२ व्याप्तिर्हि साध्ये वह्नयादौ सत्येव साधनं धूमादिरस्ति, असति तु नास्तीति साध्यसाधननियतसाहचर्यलक्षणम् । एतामेव साध्यं विना साधनस्याभावादविनाभावमिति च व्यपदिश्यन्ते। = साध्य अग्नि आदि के होने पर ही साधन धूमादिक होते हैं तथा उनके नहीं होने पर नहीं होते, इस प्रकार के साहचर्यरूप साध्य साधन के नियम को व्याप्ति कहते हैं। इस व्याप्ति को ही साध्य के बिना साधन के न होने से अविनाभाव कहते हैं।–(विशेष दे. तर्क व दृष्टान्त/१/१)।
पं.ध./उ./८९४ व्याप्तित्वं साहचर्यस्य नियमः स यथा मिथः। सति यत्र यः स्यादेव न स्यादेवासतीह यः।८९४। = परस्पर में सहचर नियम को व्याप्ति कहते हैं । वह इस प्रकार है, कि यहाँ पर जिसके होने पर जो होवें और जिसके न होने पर जो नहीं ही होवें ।–(विशेष दे. तर्क)
- अन्य सम्बन्धित विषय
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- अव्याप्त, अतिव्याप्त लक्षण।–दे. लक्षण।
- अन्वय व्यतिरेक व्याप्त दृष्टान्त।–दे. दृष्टान्त।
- अन्वय व्यतिरेक व्याप्त हेतु।–दे. हेतु।
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- व्यतिरेक व्याप्त अनुमान।–दे. अनुमान।