वीतराग
From जैनकोष
- लक्षण
ध.१/१, १, १९/१८८/९ वीतो नष्टो रागो येषां ते वीतरागाः। = जिनका राग नष्ट हो गया है उन्हें वीतराग कहते हैं।
प्र.सा./ता.प्र./१४ सकलमोहनीयविपाकविवेकभावनासौष्ठवस्फुटीकृतनिर्विकारात्मस्वरूपत्वाद्विगतरागः। = सकल मोहनीय के विपाक से भेद की भावना की उत्कृष्टता से (समस्त मोहनीय कर्म के उदय से भिन्नत्व की उत्कृष्ट भावना से निर्विकार आत्मस्वरूप को प्रगट किया होने से जो वीतराग है, (वह श्रमण शुद्धोपयोगी है)।
ल.सा./जी.प्र./३०४/३८४/१७ वीतोऽपगतो रागः संक्लेशपरिणामो यस्मादसौ वीतरागः। = राग अर्थात् संक्लेश परिणाम नष्ट हो जाने से वीतराग है।
देखें - सामायिक / १ /समता (समता, माध्यस्थ्य, शुद्धभाव, वीतरागता, चारित्र, धर्म, स्वभाव की आराधना ये सब एकार्थवाची हैं।)–(और भी देखें - मोक्षमार्ग / २ / ५ )।
- वैराग्य व वैरागी–देखें - वैराग्य।