पूर्वगत
From जैनकोष
- दृष्टि प्रवाद अंग का चौथा भेद - देखें - श्रुतज्ञान / III / १ ।
- ध. १/१,१,२/११४/७ पुव्वाणं गयं पत्त-पुव्व-सरूवं वा पुव्वगय-गिदि। = जो पूर्वों को प्राप्त हो, अथवा जिसने पूवो के स्वरूप को प्राप्त कर लिया हो, उसे पूर्वगत कहते हैं।